इससे पहले,
कि ये फिर से,
कफ़स-ए-गैर में,
गिरफ्तार हो जाये,
समझा रहा हूँ,
इस रूह को,
कि तेरे कदमों में,
जा निसार हो जाये ।
टूट ना जायें,
ये सिलसिले,
तेरी यादों से भरे,
बेनियाज़ मुहब्बत की,
इश्क़ तुझ से हो,
बेपनाह मुझे,
इस क़दर कि,
बस दीदार हो जाये ।
हों वो भी कभी,
वा-बस्ता मुझसे,
बहार होती है,
जिनके आने का सबब,
बची है उम्र अभी,
हों बेचैन खिज़ाएँ,
दिल पे कुछ उनका,
इख़्तियार हो जाये ।
तुम यहीं हो कहीं,
बहुत क़रीब मेरे कि,
सुन सकता हूँ,
तेरे दिल की धड़कन,
मगर क्यूँ ये शर्त है,
कि क़तरा -ए- रूह,
शामिल-ए-हर-शै में फ़ना,
औ' शुमार हो जाये ।
' रवीन्द्र '
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