जब निगाहों में मेरी शाम होती है,
अंजुमन -ए- दिल अज़ान होती है,
उफ़क रहा है कहीं आफ़ताब मेरा,
हसरते-शफक़ फिर जवान होती हैं ।
' रवीन्द्र '
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जब निगाहों में मेरी शाम होती है,
अंजुमन -ए- दिल अज़ान होती है,
उफ़क रहा है कहीं आफ़ताब मेरा,
हसरते-शफक़ फिर जवान होती हैं ।
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