प्रियतम पावन दृष्टि तेरी,
समझी मैं अभिलाष तेरी,
पिघले तन मन औ' गिरा,
नज़र पड़ी जब से तेरी।
निमिनमन से अवनत हुई,
मन महि मह अंकुरित हुई,
प्रेम पया चिर सिंचित हुई,
ज्योतिर्लिङ्ग उद्भित हुई ।
धरणीसम चित छाया हुई,
सृजन हेत अवकाया हुई,
निर्मल प्रज्ञ तम रजनी हुई,
बद्धभाव क्रम नवसृष्टि हुई।
पूर्ण से पूर्ण की सृष्टि भयी,
धैर्य से पूर्ण में विस्तर भयी,
चर-अचर यूँ सर्व सृष्टि भयी,
पूर्ण प्रियतम अभिलाष भयी।
अनादि धर्म का प्रमाण सृजन,
सृष्टि का चिर -विधान सृजन,
सृष्टा को करता सुमन अर्पण,
उर- वेदना का निदान सृजन ।
' रवीन्द्र '
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