झूठ नहीं सच, मैं कहता हूँ,
तुम बिन ग़म, मैं सहता हूँ ।
ना बोलेंगें हम, कसम ली है,
हैं यादों के रेले, मैं बहता हूँ ।
मुक्ति नहीं है, साँसों से बंधन,
क़ैद की तड़पन, मैं सहता हूँ ।
तुम हकीकत, ये जहाँ फ़ानी,
यकीन से बहुत, मैं कहता हूँ ।
यार ये मेरा, है अय्यार बड़ा,
हू -ब- हू खड़ा, मैं रहता हूँ ।
जहाँ तुमने , पनाह ली है,
वहीं पर कहीं, मैं रहता हूँ ।
भीड़ हो भरी, या महफिल,
हर शाम तन्हा, मैं रहता हूँ ।
ना फ़िक्र मुझे, ना है हया,
रहनुमा तुझे, मैं कहता हूँ ।
'रवीन्द्र'
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