पल जो गुजरा खुशनुमा न था,
चाहत का इस में लम्हा न था,
अब तो ऐ दिल यकीन कर ले,
पल को अगले खुशनुमा कर ले ।
कभी किसी से शिकवा न था,
किसी और पर भरोसा न था,
ईमान से जमीर अपना रख ले,
पल को अगले खुशनुमा कर ले ।
आगाज़ था अंजामे-फ़िक्र न था,
बन्दा किसी का मोहताज़ न था,
आवाज़ उसी की उर में धर ले,
पल को अगले खुशनुमा कर ले ।
जो चला गया वो अपना न था,
फिराक का कोई सदमा न था,
सोच ही में बस तब्दील कर ले,
पल को अगले खुशनुमा कर ले ।
' रवीन्द्र '
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