Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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तड़प

 

मेज़बां हम सा, क्या कहीं पायेगी,
बे-वफ़ा होके, तड़प कहाँ जायेगी ।

 

 

मुक़र्रर है जगह, दिले - नाशाद में,
ना शाद दिल में, कभी रह पायेगी ।

 

 

करते हैं मुहब्बत, सितम सह कर,
अहले-वफ़ा है, और ना तड़पायेगी ।

 

 

पाती है पनाह, हालात - ए- हिज़्र में,
देख दिल का आलम, चली आयेगी ।

 

 

इज़ाजत दे दी है, भटकने की इसे,
वफ़ा दिल से, आख़िर ये निभायेगी ।

 

 

( मुक़र्रर = Assigned, fixed; शाद = State of happiness; हालात - ए- हिज़्र = In state of separation)

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

 

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