तारीफ़ तेरी ता- क़यामत, ताक़ पे तक़दीर रख दी,
हिल गया यकीन-ए-ख़ुद, तस्वीर बे-नज़ीर रख दी ।
मंज़र महज़ लम्हों का, तारीख़ का बन गया गवाह,
थमा बशर का कारवां, सामने नज़र तहरीर रख दी ।
कितने हैं बेघर बेआसरे, कितनों के सर से साये उठे,
बची रही अक़ीदत तेरी, ज्यों बाँध कर ज़ंजीर रख दी ।
उठ सके क्या कोई आग, इस जलजले की राख़ से,
मिले तपिशे-कल्ब को आब, जल रही तस्वीर रख दी ।
धर्म का हो राज जग में, क़ायदा बस तेरा क़ायम रहे,
बे- वक़्त ना बुझें चिराग़, दिल उठी तक़लीफ़ रख दी ।
' रवीन्द्र '
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY