दरमियाँ उसूल और ज़ज्बात, ज़रा जंग है ,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।
ना छोड़ा जो उसूल, तो ज़माने को रंज है ,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।
ज़ज्बात का क्या, जगे हैं या दीद - बंद हैं,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।
हर लम्हा है तन्हा, जीन्द - चाक पैबंद है ,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।
जिम्मेवारियाँ हैं ज्यादा, फिर कोई जरुरतमंद है,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।
मर न जाएँ ज़ज्बात, ना कोई फिक्रमंद है,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।
ख़्वाब हसीं शीशे से, दुनिया दिल-ऐ-संग है,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।
शासन है दु:शासन, राष्ट्र धृष्ट और अंध है,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।
महज़ रस्में ही नहीं ,उसूल भी जरा पसंद हैं,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।
किल्लत ना कभी कोई, मौला तू सदा संग है,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।
' रवीन्द्र '
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