Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

तंग हाथ

 

दरमियाँ उसूल और ज़ज्बात, ज़रा जंग है ,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।

 

ना छोड़ा जो उसूल, तो ज़माने को रंज है ,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।

 

ज़ज्बात का क्या, जगे हैं या दीद - बंद हैं,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।

 

हर लम्हा है तन्हा, जीन्द - चाक पैबंद है ,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।

 

जिम्मेवारियाँ हैं ज्यादा, फिर कोई जरुरतमंद है,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।

 

मर न जाएँ ज़ज्बात, ना कोई फिक्रमंद है,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।

 

ख़्वाब हसीं शीशे से, दुनिया दिल-ऐ-संग है,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।

 

शासन है दु:शासन, राष्ट्र धृष्ट और अंध है,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।

 

महज़ रस्में ही नहीं ,उसूल भी जरा पसंद हैं,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।

 

किल्लत ना कभी कोई, मौला तू सदा संग है,
बात इतनी सी है और हाथ ज़रा तंग है ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ