हो गया इश्क़ में, इस तरह पिन्हा हूँ,
कि बज़्म तो जवाँ, मगर मैं तन्हा हूँ ।
सवाल हैं, हर सूं , उसके वज़ूद पर,
ज़वाब जग ज़ाहिर, मगर मैं तन्हा हूँ ।
जाम है मयस्सर, फ़रह-ए-जिंदगी का,
दौर -ए- रिन्दगी है, मगर मैं तन्हा हूँ ।
सफ़र की हक़ीक़त, इतनी समझना,
ये काफिला है मेरा, मगर मैं तन्हा हूँ ।
छिपा अर्श जिसमें, बसे कहीं मुझमें,
माना ये गुफ़्तगू में, मगर मैं तन्हा हूँ ।
' रवीन्द्र '
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