करीब आती है, क़ुरबत में पाती है,
बिछड़ कर तन्हाई , कहाँ जाती है ।
रुह ग़ुरबत में जब, तड़प जाती है,
लम्हें फ़ुरसत के, कहाँ से लाती है ।
दौरां-ए-रुसवाई, प्यार जताती है,
ज़ख्मे - फ़ुर्क़त, मरहम लगाती है ।
हिज़्र के दरम्याँ, वफ़ा सिखाती है,
न जाने किस की, दुआ दिलाती है ।
मज़रुह गमों से, कब हुआ है 'रवि',
तन्हाई हक़ीकत, दवा बन जाती है ।
( क़ुरबत = In a state of dedication with God, सामीप्य; ग़ुरबत = state of devastation, state of poverty; दौरां-ए-रुसवाई= During the period of annoyance; फ़ुर्क़त= state of Separation; हिज़्र = जुदाई; मज़रुह = injured, ज़ख्मी )
' रवीन्द्र '
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