Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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' तन्हाई '

 

तन्हाई के आईने में सच्चाई नज़र आती है ,
अक्सर मेरे महबूब की छवि उभर आती है ।

 

उसे बयाँ करना क्या, जो हक़ीकत है,
खूबसूरत हो तुम, ये भी हकीकत है ।

 

सपने में हुए जुर्म की, सज़ा नहीं होती ,
दे जाये जो दर्द, वो तक़दीर नहीं होती,
बिके जो सरे- बाज़ार, वफ़ा नहीं होती,
तख़ल्लुस शायरी की ज़रुरत नहीं होती ।

 

 

फिकरों की तू ,फिक्र ना कर ,
ज़िक्र सब ज़माने से ना कर ,
हो जाएगी उम्र, यूँ ही गुज़र,
गिरना न कभी निगाहे-नज़र ।

 

 

विश्वरूपं का अन्ततः दर्शन हो गया,
लाठी जिसकी थी, वो भैंस ले गया ।

 

सच्चाई में बला की खूबसूरती होती है,
गुनाहगारों से इसकी दुश्मनी होती है,
ज़माने से इसे बचाना ज़रूरत होती है,
वास्ते हिफाज़त चिलमन ज़रूरी होती है।

 

तेरी मुस्कान, जो खिले,
मुहब्बत का दिया जले,
ज़ज्बात की हवा चले,
कलम कवि की तब चले।

 

जिसके ज़माल ने मुझे, तुझ से परे कर रखा है,
उस हसीना को क्यों, क़दमों में सजा रखा है ।

 

  • क़ुव्वत '

    किसी हस्सास दिल में हरदम, ये धडकनों के साथ बसती हैं ,
    यादों में गज़ब की क़ुव्वत, क़सके-वक़्त को महफूज़ रखती हैं ।

 

  • पनाह '

    तेरे नूर की पनाह में,
    मेरी इबादत का घर है,
    अंजुमन-ए-परस्तिश है,
    फ़र्जो- ईमान का दर है ।

 

  • खुदाई '

    ज़िन्दगी की सच्चाई है,
    ये दोस्ती नहीं खुदाई है ।

 

  • फ़ुर्सत '

    दावत तेरी बज़्म की हर दम कुबूल है,
    फ़ुर्सत ही फ़ुर्सत है, हर वक़्त माक़ूल है ।

 

क्या खूब निज़ाम है ये जम्हूरियत का,

नसीब में बस मजलिसें और सभाएँ है ।

 

  • फ़ैसला '

    इश्क़ फ़िर ग़मगीन है, वफ़ा का क़त्ल हो गया,
    फ़ैसला तेगे- मुंसिफ़ का, क़ातिले- हक़ हो गया ।

 

हरी भरी ये दुनिया, एक तेरे दम से है ,
जाँ के साथ जिग़र में, तू बाँकपन से है ।

 

ग़म- ए- फुरक़त के दिल ने, लुटाये सब खज़ाने होते,
दास्ताँ कुर्बाने मुहब्बत की, नज़्म ग़र तुम सुनाये होते ।

 

 

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