इस तसव्वुर ने आज फिर भरमाया,
ख्वाब झूठा ही शब भर दिखलाया ।
कमल से नाज़ुक थे मखमली अहसास,
कतरा-ए-शबनम सुबह न नज़र आया ।
खुशनुमा सी तल सबील की वो ठंडक,
इस सहर ने सहरा ही फिर दिखलाया ।
एक दिल का फसाना था दूसरे के लिए,
तीरगी ने इसे किस मुकाम पे पहुँचाया ।
कब तक वफा करेगा तसव्वुर से 'रवि',
जिंदगी भर तो इसने है यूँ ही तरसाया ।
' रवीन्द्र '
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