Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

तसव्वुर

 

इस तसव्वुर ने आज फिर भरमाया,
ख्वाब झूठा ही शब भर दिखलाया ।

 

कमल से नाज़ुक थे मखमली अहसास,
कतरा-ए-शबनम सुबह न नज़र आया ।

 

खुशनुमा सी तल सबील की वो ठंडक,
इस सहर ने सहरा ही फिर दिखलाया ।

 

एक दिल का फसाना था दूसरे के लिए,
तीरगी ने इसे किस मुकाम पे पहुँचाया ।

 

कब तक वफा करेगा तसव्वुर से 'रवि',
जिंदगी भर तो इसने है यूँ ही तरसाया ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ