काल की प्राची दिशा से,
मातलि का ईश झाँके ,
पुनः जन्में हैं वृत्तासुर ,
दधीचियों से हाड़ माँगे.
देव शक्तिहीन हुए सब ,
पराभव स्पष्ट दृष्टिगोचर,
यज्ञ समिधाएँ जुटें जब,
तब कोई यज्ञ भाग माँगे.
आसुरी है चित्त चिंतन,
भयभीत सभी ऋत्विज,
ऋचाओं का क्षीण कंपन,
सत्य का अनुनाद माँगे.
समस्याओं से ग्रस्त जीवन,
पास जिसके त्रास का हल,
धूर्त राष्ट्र अनमने मन ,
विदुर तेरा वनवास माँगे.
पांसों पर हैं निर्भर सभी,
षड़यंत्र में फिर द्रोपदी,
अजातशत्रु का दाँव सही,
या गलत का जवाब माँगे.
दीन क्षीण सभी महिजन,
लघु आयु जीर्ण तन बल,
पीड़ित दुखी वसुंधरा अब,
हे कृष्ण तेरा प्यार माँगे.
रवीन्द्र
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