Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

थकान

 

तुम दो घड़ी ज़रा पास बैठो ,
हारे मन की उड़ान थमने दो।

 

हसरतों की तीव्र प्यास को,
यथार्थ का नीर निगलने दो ।

 

ज़ख्मों में है अभी दर्द ज़्यादा ,
ज़रा ज़ोर-ए-दर्द निकलने दो ।

 

समय क्योँ हुआ कल ख़राब ,
सबब इसका ज़रा समझने दो।

 

सज़ा मिली है किस जुर्म की ,
घडी फ़ैसले की गुज़रने दो ।

 

दर्द मिला है किस से कितना,
हिसाब कुछ और समझने दो ।

 

ज़िन्दगी जंग नहीं तो क्या है,
ज़रा क़रीब से इसे परखने दो ।

 

घनघोर घटा समाँ है डरावना,
मिजाज़ ज़रा कुछ बदलने दो ।

 

भयभीत मन है अभी अनमना,
कतरा कतरा इसे पिघलने दो ।

 

सरे-राह दिल को दे सके सुकूँ ,
हमराह ऐसा कोई निकलने दो ।

 

कल न हो फिर कल के जैसा,
दुआ पाक दिलों से निकलने दो ।

 

ज़रा दो घड़ी तुम पास बैठो ,
हारे मन की थकान मिटने दो ।

 

 

' रवीन्द्र '

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ