जहाँ ताज़ी हवा, और प्रीत के झोंके,
उस सकून की नगरी, बसना है जाके ।
अनबन की पायल, ना रुन झुन बाजे,
हो रूह का बन्धन, बस और ना धागे ।
अनजान सफर, दिल धुक धुक भागे,
उर का ये पन्छी , बस उड़ना ही माँगे ।
था नीड़ निमंत्रण, हम रह गये अभागे,
लो भोर हुई अब, ये समझो कि जागे ।
वहाँ ठौर ठिकाना, जहाँ अपना लागे,
बाँहों में भर ले, वो आकर अब आगे ।
' रवीन्द्र '
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