Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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ठौर - ठिकाना

 

जहाँ ताज़ी हवा, और प्रीत के झोंके,
उस सकून की नगरी, बसना है जाके ।

 

अनबन की पायल, ना रुन झुन बाजे,
हो रूह का बन्धन, बस और ना धागे ।

 

अनजान सफर, दिल धुक धुक भागे,
उर का ये पन्छी , बस उड़ना ही माँगे ।

 

था नीड़ निमंत्रण, हम रह गये अभागे,
लो भोर हुई अब, ये समझो कि जागे ।

 

वहाँ ठौर ठिकाना, जहाँ अपना लागे,
बाँहों में भर ले, वो आकर अब आगे ।

 

 

' रवीन्द्र '

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