ढूँढ़ती जिसको नज़र, फलक के सितारों में,
गुलज़ार हुआ चमन में, बशर के इशारों में ।
बेकरारी का आलम, सब्र का और इम्तेहां,
मिला वो अक्सर हमें, खिंजा की बहारों में ।
आ सकें दर तक तेरे, और करें सज़दा तुझे,
ताब कहाँ इतनी बची, मुहब्बत के मारों में ।
है अहले-दिल ग़र कोई , तो सिर्फ़ गुल है,
बिखेरे रंग औ' खुशबू, जहाँ के नजारों में ।
मन्नतें, अरदास, बे-असर क़ाज़ी की दुआ,
ख़ुशी असल में मिली, तबस्सुमे - बेचारों में ।
बा-वास्ता मज़हबों से हैं, जां-गुज़र के लिये,
चस्पा हुआ है खुदा, तसव्वुर की दीवारों में ।
पाकीज़गी इश्क़ की, पुर्ज़ा पुर्ज़ा संगत में है,
ज़ुस्तजूं उस इल्म की, मिले जो नकारों में ।
तलाश जिसकी 'रवि', बशर दर बशर यहाँ,
ठौर है उसका कहीं , ख्यालों की दरारों में ।
( बशर= life, जीवन ; तसव्वुर= Imagination, कल्पना ; पाकीज़गी= Purity, पवित्रता; ताब= Heat, Power )
' रवीन्द्र '
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