नज़ारे सारे तेरे, बहुत कमाल के हैं,
गुल ये सारे खिले, मेरे अमाल के हैं ।
ख़त्म हो चुकी वो, दास्तानें इश्क़ की,
बचे अफ़साने सारे, गिरे रुमाल के हैं ।
शमाँ तो रोशन रही, वाबस्ता अरमान,
हसरतें जवाँ मेरे, जलती मशाल के हैं ।
कह दिया अलविदा, अंधेरों को सभी,
अफ़कार अब सारे, यहाँ उजाल के हैं ।
कुछ तो भुला दिये, कुछ महफ़ूज हैं,
शहर में चर्चे सारे, तेरे ज़माल के हैं ।
'रवीन्द्र'
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