- 'उस्ताद'
ढूंढता फिर रहा मगर , मिलता नहीं अब कहीं निशां,
सख्त लहज़े में हुनर नवाज़ा, उस्ताद ऐसा अब कहाँ.
- ' गाफ़िल '
तेरे कूचे से जब हो के गुज़रे,
क्यूँ न तेरे दर को छूके निकले,
बे-वफ़ाई न दस्तूरे - दर तेरा ,
हमीं गाफ़िल- ए- वफ़ा निकले।
- ' धोखा '
उम्र तमाम गुज़री , अहसास तब हुआ हासिल,
नज़र का धोखा फखत, यहाँ कोई नहीं मंजिल।
' निशान '
चले जाना मगर निशाँ छोड़ जाना ,
रहने को औरों के, मकां छोड़ जाना ।
' ख़्वाब '
हर बार ख़्वाब तोड़ कर ही तूने सजा दी,
ख्वाबे- खुदगर्जी देखने की जब भी ख़ता की ।
' अचरज '
कश्ती भँवर में नहीं डूबी, माँझी नये सँभाल लेते हैं,
छोड़ गये जो बीच धार, यूँ ही अचरज बयाँ करते हैं।
' शिकायत '
उनको है शिकायत हमसे कि ख़्वाबों में नहीं आते,
कैसे कहें उनसे कि उनके ख़्वाब ही तो हमें सताते।
- ' भरोसा '
कश्ती को हर बार साहिल पे पाया,
भरोसे पर तेरे जब भी छोड़ आया ।
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