अक़्सर हमसे ये ख़ता होती है,
हक़ीक़त जुबां से बयाँ होती है,
नहीं मिलती है मुनासिब सज़ा,
तभी हर बार. ये वफ़ा होती है ।
' रवीन्द्र '
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अक़्सर हमसे ये ख़ता होती है,
हक़ीक़त जुबां से बयाँ होती है,
नहीं मिलती है मुनासिब सज़ा,
तभी हर बार. ये वफ़ा होती है ।
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