सहमी सहमी सी मुंबई,
ये आज क्या हो गया,
जोश का समुन्दर क्यूँ
ग़म का सागर हो गया।
आज शाम ग़म की शाम,
लुटी बे-वक़्त आनो-शान ,
किस से करें अब फ़रियाद,
वक़्त से जो सामना हो गया ।
शेर सो गया है यकीं नहीं ,
गर्ज़ पड़ेगा ये अभी यहीं,
चारागर को कुछ इल्म नहीं,
नब्ज़ का मुगालता हो गया।
ठहर जा कुछ कह के जा,
चश्मतरों को सब्र दे जा,
अश्क़ बहते तब रुकेगें ,
जुबाँ आने की दे के जा ।
' रवीन्द्र ',
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