Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वक़्त

 

बात दिल की, कैसे कह लूँ, मैं,
ठहरता ही नहीं, ये वक़्त पहलू में ।

 

यही रवायत है, पहचान इसकी,
बशर सभी की, इसके पहलू में ।

 

ना तो जाता है, न आता है कहीं,
गुज़र रही ज़िन्द, इसके पहलू में ।

 

अमर हो जाये , वो हर शै यहाँ,
रख ले वो पास, जिसे पहलू में ।

 

पल भर के लिये, हुआ आक़िल,
बैठा था अभी, जिसके पहलू में ।

 

कमज़र्फ़ एक, रह गया है 'रवि',
चला गया अभी, जो था पहलू में ।

 

बात दिल की, कैसे कह लूँ, मैं,
ठहरता ही नहीं, ये वक़्त पहलू में ।

 

 

रवीन्द्र कुमार गोयल

 

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