बात दिल की, कैसे कह लूँ, मैं,
ठहरता ही नहीं, ये वक़्त पहलू में ।
यही रवायत है, पहचान इसकी,
बशर सभी की, इसके पहलू में ।
ना तो जाता है, न आता है कहीं,
गुज़र रही ज़िन्द, इसके पहलू में ।
अमर हो जाये , वो हर शै यहाँ,
रख ले वो पास, जिसे पहलू में ।
पल भर के लिये, हुआ आक़िल,
बैठा था अभी, जिसके पहलू में ।
कमज़र्फ़ एक, रह गया है 'रवि',
चला गया अभी, जो था पहलू में ।
बात दिल की, कैसे कह लूँ, मैं,
ठहरता ही नहीं, ये वक़्त पहलू में ।
रवीन्द्र कुमार गोयल
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