जाते जाते भी जूना , शर्मो - ज़िल्लत दे गया,
साल नये को भी बदनसीबी का ज़ख्म दे गया ।
भूलना चाहें भी अगर, तो भूल न सकेंगें ,
भूले जो अगर तो फिर, ज़ख्म नये मिलेंगें।
ख़स्ता हैं सूरते -हाल, जिसका नज़राना दे गया,
समझते जो खूबसूरत, हाथ उनके आईना दे गया ।
' रवीन्द्र '
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