Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

वर्ष - 2012

 

जाते जाते भी जूना , शर्मो - ज़िल्लत दे गया,
साल नये को भी बदनसीबी का ज़ख्म दे गया ।

 

भूलना चाहें भी अगर, तो भूल न सकेंगें ,
भूले जो अगर तो फिर, ज़ख्म नये मिलेंगें।

 

ख़स्ता हैं सूरते -हाल, जिसका नज़राना दे गया,
समझते जो खूबसूरत, हाथ उनके आईना दे गया ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

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