Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

वर्ष - 2014

 
  • अफ़सोस तो बहुत, तुम्हें भुलाने का,
    दस्तूर यही है मगर, मेरे मैखाने का ।

 

 

  • किसी को दबा कर, कोई पनपता है,
    उगता है रोज़ सूरज, नये ज़माने का ।

    तुम शिकायत भी, अब ना कर सकोगे,
    देखा है तुमने भी, अन्जाम पुराने का ।

 

 

रवीन्द्र कुमार गोयल

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