Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

वस्ले - रात

 

किस्सा ना कोई ज़िक्र, ना तेरी बात हो,
कलामे-शायरी की फिर, क्या औकात हो ।

 

मिले दुआ तो सही , वर्ना तन्हा ही भले,
मशरूफियते दोस्ती, दिल्लगी अहसास हो ।

 

जाने कितने सिकंदर, समेटे माजी समंदर,
जाना हो फज़ल से, न ग़म -ए- बारात हो ।

 

मिले माँगने से ग़र, तो करें मौत की दुआ,
कहें क्या उसे जिन्दगी, लगती खैरात हो ।

 

इश्क़ का तराना , रहे हुस्न की ख़िदमत,
हैं तरन्नुम में दोनों, मानों वस्ले रात हो ।

 

 

' रवीन्द्र '

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ