Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

विरह लेख

 

जाने क्या हमने, था तुझ में देखा,
जाना तुम्हें अपनी, बख़्त की रेखा ।

 

 

अशार ओ' छन्द नहीं, सिर्फ भाव,
याद तेरी, बन गयी, है मेरी पूजा ।

 

 

साँस घटती मगर, है अमिट आस,
दर्श की अभिलाष, सबब ना दूजा ।

 

 

एक था शुक और एक सारिका,
स्वर जुगल था , कोकिला गूंजा ।

 

 

मैं व्यथित और तुम चिर प्रतीक्षित,
कृत विरचित यह, विरह का लेखा ।

 

 

 

' रवीन्द्र '

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ