' ना जानूँ सनम,
होती है क्या,
गम की शाम।
जल उठे ,
सौ दिए,
जब लिया,
तेरा नाम '
क्या हुआ सनम,
कौन सा
है ये काम,
जब तलक,
तन में प्राण,
है कहाँ
यहाँ विश्राम ।
जहां तेरा सनम,
मैं तेरा,
तेरा ही सारा काम,
मैं नहीं,
करता तू ही,
फ़िर क्यों
कैसा विश्राम ।
' रवीन्द्र '
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