माया है , कि अमाया है,
सेंसर भी एक छलावा है,
विश्वरूप के अ-दर्शन ने
सत्य स्वरुप दिखलाया है।
कमल पे ममता आई है,
ये तो ललिता माई है,
मद्र देश में मुक्त हुए हैं,
आगे अभिषेक भाई है ।
आज़ादी है या स्वपनन है,
दिखती मुक्ति पर बंधन है,
राष्ट्रीयता का अखिल घोष,
क्षेत्रीयता से दुर-दामित है ।
नए समीकरण नई व्याधि,
सत्य की आशा रहे प्यासी,
हसित कमल रहा है दंडित,
स्व-प्रदेश से हुआ निराशी ।
धृष्ट प्रशासन नहीं है शासन,
न्याय भी यहाँ अंकुशित है ,
दिखे सब कुछ सच्चा मीठा,
माया का यह विश्वरूपम है ।
' रवीन्द्र '
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