Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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यकीन

 

तू हम-सफ़र मेरा , मेरी मंज़िल तू है,
ज़िद-ए-बन्दगी मेरी, का हासिल तू है ।

 

ज़र्रा है हरेक शै, तेरे ही ज़माल का,
मेरी हर एक साँस, पे क़ाबिज़ तू है ।

 

हर मुक़ाम मेरा, निगाहों की रोशनी में,
हौसला हर उड़ान का, मुहाफिज़ तू है ।

 

कारवाँ है मेरा, कश्ती की पतवार भी,
तूफ़ान से जो ठनी है, तो साहिल तू है ।

 

ज़िंदगी भी क्या है, ये अमानत है तेरी,
ता-उम्र इस ज़िंदगी, में शामिल तू है ।

 

 

' रवीन्द्र '

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