Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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योग- निष्ठा

 

ये हकीकत है या इसे महज संयोग कहते हैं,
जीवन जड़ का चेतन से जिसे योग कहते हैं ।

 

चेतन की तो हर हाल में यहाँ प्रभुता है,
प्रस्तर में भी तो असल में वही पुजता है ।

 

जगह नहीं कोई जग में, जहाँ दोनों न हों,
हर वक़्त हर हाल, दोनों की व्यापकता है ।

 

दुःख भ्रामक जड़ की क्षण भर की सत्ता है,
जड़ जोड़ से मुक्ति ही, सुख की अवस्था है ।

 

चेतन के जड़ से बिछड़ने के कारण दुःख है,
वर्ना तो चेतन सदा, अवचेतन में निहित है ।

 

रहे चेतन में रमा, तो ना कहीं पर दुःख है,
नहीं तो दुनिया में, कहाँ कौन सा सुख है ।

 

यही सच सृष्टि के आदि में सूरज को दिया,
योग नाम से यही कृष्ण ने गीता में दिया ।

 

कृष्ण तेरी भक्ति का, इतना सा सबब है,
तपना औरों के लिए, योग का मतलब है ।

 

तपता है तभी तो रवि सारी सृष्टि के लिए,
चलता है सदा, उर में चेतन की याद लिए ।

 

 

' रवीन्द्र '

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