ये हकीकत है या इसे महज संयोग कहते हैं,
जीवन जड़ का चेतन से जिसे योग कहते हैं ।
चेतन की तो हर हाल में यहाँ प्रभुता है,
प्रस्तर में भी तो असल में वही पुजता है ।
जगह नहीं कोई जग में, जहाँ दोनों न हों,
हर वक़्त हर हाल, दोनों की व्यापकता है ।
दुःख भ्रामक जड़ की क्षण भर की सत्ता है,
जड़ जोड़ से मुक्ति ही, सुख की अवस्था है ।
चेतन के जड़ से बिछड़ने के कारण दुःख है,
वर्ना तो चेतन सदा, अवचेतन में निहित है ।
रहे चेतन में रमा, तो ना कहीं पर दुःख है,
नहीं तो दुनिया में, कहाँ कौन सा सुख है ।
यही सच सृष्टि के आदि में सूरज को दिया,
योग नाम से यही कृष्ण ने गीता में दिया ।
कृष्ण तेरी भक्ति का, इतना सा सबब है,
तपना औरों के लिए, योग का मतलब है ।
तपता है तभी तो रवि सारी सृष्टि के लिए,
चलता है सदा, उर में चेतन की याद लिए ।
' रवीन्द्र '
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