कल था, उजास से भरा,
आज उदासियों से घिरा,
राजनीति है विचित्र रण,
कवच स्वच्छता है छिना ।
एक मी लार्ड थे,
एक थे माई गॉड,
पहला झेले कमैटी,
दूसरा पुलिस खौफ़ ।
कभी जो तेज था,
आज वही रुग्ण है,
तहलका शहर में,
हुआ वो तरुण है ।
पहेली की शकल में,
छुपा ये यक्ष प्रश्न है,
किस पर हो भरोसा,
क्या यही गण तंत्र है ?
' रवीन्द्र '
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