Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हर शाख पे उल्लू बैठा है, अन्जामे - गुलिश्ता क्या होगा ?

 

() रवीन्द्र प्रभात

 


'' हो गयी हर घाट पर पूरी व्यवस्था , शौक़ से डूबें जिसे भी डूबना है '' दुष्यंत ने आपातकाल के दौरान ये पंक्तियाँ कही थी , तब शायद उन्हें भी यह एहसास नहीं रहा होगा कि आनेवाले समय में बिना किसी दबाब के लोग स्वर्ग या फिर नरक लोक की यात्रा करेंगे ।


वैसे जब काफी संख्या में लोग मरेंगे , तो नरक हाऊसफुल होना लाजमी है, ऐसे में यमराज की ये मजबूरी होगी कि सभी के लिए नरक में जगह की व्यवस्था होने तक स्वर्ग में ही रखा जाये । तो चलिए स्वर्ग में चलने की तैयारी करते हैं । संभव है कि पक्ष और प्रतिपक्ष हमारी मूर्खता पर हँसेंगे, मुस्कुरायेंगे, ठहाका लगायेंगे और हम बिना यमराज की प्रतीक्षा किये खुद अपनी मृत्यु का टिकट कराएँगे ।


जी हाँ , हमने मरने की पूरी तैयारी कर ली है, शायद आप भी कर रहे होंगे, आपके रिश्तेदार भी, यानी कि पूरा समाज ! अन्य किसी मुद्दे पर हम एक हों या ना हों मगर वसुधैव कुटुम्बकम की बात पर एक हो सकते हैं, माध्यम होगा न चाहते हुये भी मरने के लिए एक साथ तैयार होना ।


तो तैयार हो जाएँ मरने के लिए , मगर एक बार में नहीं , किश्तों में । आप तैयार हैं तो ठीक, नहीं तैयार हैं तो ठीक, मरना तो है हीं, क्योंकि पक्ष- प्रतिपक्ष तो अमूर्त है, वह आपको क्या मारेगी, आपको मारने की व्यवस्था में आपके अपने हीं जुटे हुये हैं।


यह मौत दीर्घकालिक है, अल्पकालिक नहीं । चावल में कंकर की मिलावट , लाल मिर्च में ईंट - गारे का चूरन, दूध में यूरिया, खोया में सिंथेटिक सामग्रियाँ , सब्जियों में विषैले रसायन की मिलावट । और तो और देशी घी में चर्वी, मानव खोपडी, हड्डियों की मिलावट क्या आपकी किश्तों में खुदकुशी के लिए काफी नहीं ?
भाई साहब, क्या मुल्ला क्या पंडित इस मिलावट ने सबको मांसाहारी बना दिया । अब अपने देश में कोई शाकाहारी नहीं, यानी कि मिलावट खोरो ने समाजवाद ला दिया हमारे देश में, जो काम सरकार चौंसठ वर्षों में नहीं कर पाई वह व्यापारियों ने चुटकी बजाकर कर दिया, जय बोलो बईमान की ।


भाई साहब, अगर आप जीवट वाले निकले और मिलावट ने आपका कुछ भी नही बिगारा तो नकली दवाएं आपको मार डालेगी । यानी कि मरना है, मगर तय आपको करना है कि आप कैसे मरना चाहते हैं एकवार में या किश्तों में?
भूखो मरना चाहते हैं या या फिर विषाक्त और मिलावटी खाद्य खाकर?
बीमारी से मरना चाहते हैं या नकली दवाओं से ?


आतंकवादियों के हाथों मरना चाहते हैं या अपनी हीं देशभक्त जनसेवक पुलिस कि लाठियों, गोलियों से ?
इस मुगालते में मत रहिए कि पुलिस आपकी दोस्त है। नकली इनकाऊंटर कर दिए जायेंगे, टी आर पी बढाने के लिए मीडियाकर्मी कुछ ऐसे शव्द जाल बूनेंगे कि मरने के बाद भी आपकी आत्मा को शांति न मिले ।


अब आप कहेंगे कि यार एक नेता ने रबडी में चारा मिलाया, खाया कुछ हुआ, नही ना ? एक नेतईन ने साडी में बांधकर इलेक्ट्रोनिक सामानों को गले के नीचे उतारा, कुछ हुआ नही ना ? एक ने पूरे प्रदेश की राशन को डकार गया कुछ हुआ नही ना ? एक ने कई लाख वर्ग किलो मीटर धरती मईया को चट कर गया कुछ हुआ नही ना ? और तो और अलकतरा यानी तारकोल पीने वाले एक नेता जी आज भी वैसे ही मुस्करा रहे हैं जैसे सुहागरात में मुस्कुराये थे। भैया जब उन्हें कुछ नही हुआ तो छोटे - मोटे गोरखधंधे से हमारा क्या होगा? कुछ नही होगा यार टेंसन - वेंसन नही लेने का । चलने दो जैसे चल रही है दुनिया ।


भाई कैसे चलने दें, अब तो यह भी नही कह सकते की अपना काम बनता भाड़ में जाये जनता। क्योंकि मिलावट खोरो ने कुछ भी ऐसा संकेत नही छोड़ रखा है जिससे पहचान की जा सके की कौन असली है और कौन नकली ?
जिन लोगों से ये आशा की जाती थी की वे अच्छे होंगे, उनके भी कारनामे आजकल कभी ऑपरेशन तहलका में, ऑपरेशन दुर्योधन में, ऑपरेशन चक्रव्यूह में , आदि- आदि में उजागर होते रहते हैं । अब तो देशभक्त और गद्दार में कोई अंतर ही नही रहा। हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम - गुलिश्ता क्या होगा ?

 

 

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