रवीन्द्र प्रभात
कांच के जज्बात, हिम्मत कांच की
यार ये कैसी है इज्जत कांच की ?
पालते हैं खोखले आदर्श हम-
माँगते हैं लोग मन्नत कांच की
पत्थरों के शहर में महफूज़ है-
देखिये अपनी भी किस्मत कांच की
चुभ गया आँखों में मंजर कांच का-
दब गयी पाने की हसरत कांच की
सोचिये अगली सदी को देंगे क्या
रंगीनियाँ या कोई जन्नत कांच की ?
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