() रवीन्द्र प्रभात
“अपने हक़ और हकूक की हिफाजत में -
क्यों भूल गयी मजहबी कायदे-कानून ?
कच्ची उम्र मे-
खिलौनों और गुड़ियों की ज़िद करने के बजाय
चटर पटर मुंहफट क्यों हो गयी मलाला ?
तुम्हें नहीं पता, कि-
बुनियादी स्वतंत्रता जैसे पेचीदा विषयों पर
ज़बर गला फाड़-फाड़ के बोलने वालों का क्या हश्र होता है पख्तून समाज में ?
घर के काम काज में अपनी मां का हाथ बंटाने के बजाय
क्या जरूरत थी तालिम-वालीम की बात करने की ?”
मैं जानता हूँ कि क्या बोलेगी तेरी डायरी
इन प्रश्नों के जबाब में गुल मकई ?
यही न, कि -
तुम्हारे भीतर भी है एक बुद्ध
जो स्वात में आत्मीयता के जाग्रत लाल सूरज से
संकीर्ण विषमता के कुहासों को उजाड़ देना चाहता है
हिंसा से परे एक ऐसा माहौल देना चाहता है, जिसमें-
तुम और तुम्हारी सहेलियाँ सहज-सरल विचरण कर सको
निहार सको बेखौफ संसार को स्वात की मीनार से
दे सको दुनिया को अमन-चैन का नया आदर्श
और बन सको गर्बोन्नत स्वाभिमानी जागरूक
बुद्ध की तरह ।
धर्म को बनिए की दृष्टि से देखने वालों के खिलाफ
एक आवाज़ बन गयी हो तुम
शिक्षा-शांति और अनाक्रमण चाहती हो
हमारे बुद्ध भी यही चाहते थे
आखिर जीत बुद्ध की ही हुयी थी न ।
तुम्हारी भी होगी
और निश्चित रूप से एकदिन तुम भी करोगी
शंखनाद शिक्षा-शांति और अनाक्रमण का
बुद्ध की तरह ।
कभी कोई मलाला बनने की न सोचे, शायद इसलिए-
निशाना बनाया था दहशतगर्दों ने तुम्हारे दिमाग को
और कर दिया था लहूलुहान
ताकि इस्तेमाल न कर सको फिर से उनके खिलाफ
अपनी बुद्धि और विवेक का ….!
जब बामियान में तोपों से ध्वस्त न हो सके थे बुद्ध ,
तुम कैसे हो सकती हो ध्वस्त चंद गोलियों की घनघनाहट से ।
तुम्हारा जिंदा रहना जरूरी है गुल मकई
तुम्हें जागना होगा फिर से
अपनी इस अधूरी लड़ाई को जीतने के लिए
तुम्हें देना ही होगा
स्वात के साथ-साथ विश्व को शिक्षा-शांति और अनाक्रमण का संदेश
बुद्ध की तरह ।
=========================मलाला युसुफजई उर्फ गुल मकई ,स्वात घाटी की चौदह साल की लड़की है । तालिबान ने विद्यालय बंद कर दिए थे ।2009 में मलाला ने गुल मकई के नाम से बी बी सी उर्दू के लिए डायरी लिखना शुरू किया। सातवी में पढ़ रही मलाला ने तालिबान के फतवे का असर को दर्ज किया था । 9 अक्टूबर 2012 को स्कूल जाते वक्त शहर मिंगोरा में तालिबानी ने उसके सिर में गोली मारी । वह अभी लन्दन के एक अस्पताल में है।
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY