Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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हार गई मैं

 

आज का दिन फिर हार गई ...
कोई सिलसिला न हुआ ..
कोई जद्दोजेहद न की हमने
फासले बिखरे रहे दरमियाँ यूँ ही ...
आवाजें कटी कटी सी रहीं ..
आँखे मिलने न दीं तुमने
पलकों को झुकाए रखा ..
मेरी एक कोशिश को भी
तुम्हारी तल्ख़ यादों ने थाम लिया ....
एक नक़्शा सा बुन गया दिल पर
मेरी यादों ने तेरे चेहरे पर
ख़ामोश घबराहट की तहरीर लिखी थी
..........................पढ़ ली मैंने सन्नाटे पर ..
अफ़सोस हुआ तुम कह न सके की
तेरे सारे लम्हे मैं अब बाँट चूका हूँ
ये यादों की सिमटी सिल्वटें अब मिटा दे ...
तेरे चेहरे पे एक और चेहरा रख चुका हूँ
अपना चेहरा उस चेहरे से मिटा दे ...
..................दिन गुज़र गया ...रात सहम गई ...
आँखों ने लफ्ज़ ...सब पढ़ लिए चेहरे के
रिश्ते उखड गए दिल से
.......जिनको ज़िन्दगी बन सदियों सींचा था ....

 

 

रौनक हबीब

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