तब तक न इश्क़ को कहीं रुस्वा करे कोई
जब तक न इश्क़ से भी कुछ अच्छा करे कोई
रुस्वाइयों का बदले में रुस्वाइयाँ न दे
कूचा-ए-यार में न तमाशा करे कोई
भूखे शिकम के वास्ते जिसने गुनाह किया
ऐसे गुनाहगार को बख्शा करे कोई
रहता है अब तो हर घड़ी तैयार मेरा दिल
मालूम क्या कि कब, कहाँ धोखा करे कोई
इक रोज ये तबाही का बन जाएगा सबब
मजहब को यूँ न सर पे बिठाया करे कोई
हम भी निसार शौक़ से हो जाएं इश्क़ में
हमसे भी इश्क़, इश्क़ के जैसा करे कोई
तनकीद भी बुरी नहीं लगती हमें सुमन
तनकीद भी मगर ब-सलीका करे कोई
----©रायसिंह 'सुमन'
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