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सड़क, सांड़, शोहदों से बचिए

 

रीता विश्वकर्मा

 

 


यहाँ भारत देश के उत्तर प्रदेश प्रान्त के अकबरपुर की बात हो रही है, जो कभी फैजाबाद जिले की एक प्रमुख तहसील हुआ करती थी, और 29 सितम्बर 1995 से अम्बेडकरनगर जिले का मुख्यालयी शहर है। जी हाँ इसी से जुड़ा उपनगर शहजादपुर है, जहाँ विश्व विख्यात समाज शास्त्री डॉ. लोहिया ने जन्म लिया था यही नहीं इन दोनों उपनगरों के बीचो बीच पौराणिक नदी तमसा बहती है। अगर यह भी कहा जाए कि इस शहर का महत्व विख्यात स्वतंत्रा संग्राम सेनानी और समाज सेवी काँग्रेस के लीडर डॉ. गणेश कृष्ण जेटली का कर्म स्थान होने से और भी बढ़ता है तो कृपया इसे अन्यथा न लिया जाए।
1975 में अकबरपुर को नगर पालिका का दर्जा और तब से अब तक इस शहर की आबादी कई गुना बढ़ गई है, साथ ही इसके विस्तार का सिलसिला बदस्तूर जारी है। नगर पालिका का दर्जा हासिल होने के ठीक 20 वर्ष बाद इस नगर (अकबरपुर) को जिला मुख्यालयी शहर होने का गौरव प्राप्त हुआ। छोड़िए इन सब बातों को अब मुख्य मुद्दे पर आइए। अकबरपुर बस स्टेशन से पुरानी तहसील तिराहे को जाने वाले मुख्य सड़क मार्ग पर फ्लाई ओवर के निर्माण से यहाँ की शहरीयत विलुप्त हो गई। जिस क्षेत्र में यह उपरिगामी सेतु बना है उसे सिविल लाइन्स कहा जाता रहा, अब वही इलाका कबाड़ सा होकर रह गया। यही नहीं नगर पालिका की कैबिनेट द्वारा उपेक्षित इस क्षेत्र के लोग अपनी रिहायशी कालोनियों से निकलकर मुख्य सड़क मार्ग पर आने से हिचकिचाते हैं।
कारण एक नहीं अनेकों वजह है, जिनके चलते बच्चे, बूढ़े, जवान और महिलाएँ अपने ही शहर की दोनों तरफ की पटरियाँ (फुटपाथ) दुर्दशाग्रस्त हो गई है, जिन पर पैदल चलना दूभर है। बच्चे एवं बूढ़े तथा महिलाएँ इन पटरियों पर गिरकर अनेकों बार घायल हो चुके हैं। कोई गिरकर घायल हो, उसका अंग भंग हो या फिर परलोक गमन कर जाए, यह नगर वासियों की निजी प्रॉब्लम हो सकती है, जिससे निजात पाने के लिए वह नगर पालिका परिषद के पदाधिकारियों को कोसें या मन मसोस कर घुटन भरा जीवन जीए यह उन पर डिपेण्ड करता है। वर्तमान नगर पालिका अध्यक्ष चन्द्रप्रकाश वर्मा से उनके प्रथम कार्यकाल 5 वर्ष सड़क पटरियों के निर्माण के लिए पूँछा गया था, उन्होंने कहा कि किसी भी वार्ड के सभासदों ने बैठकों में इस पर प्रस्ताव ही नहीं दिया। 50-60 लाख रूप्ए का खर्चा है, यदि प्रस्ताव आता तो शासन को लिख करके धन की डिमाण्ड करते।
यह बताना जरूरी हो गया है कि अकबरपुर नपाप के अध्यक्ष पर पक्षपात का आरोप लगने लगा है। पुरानी तहसील तिराहे के उत्तर से बस स्टेशन, टाण्डा रोड मुख्य सड़क मार्ग के दोनों तरफ व्यवसाय करने वालों का कहना है कि चन्द्र प्रकाश वर्मा ने बीते नगर निकाय चुनाव के दौरान यह वादा किया था कि यदि दुबारा अध्यक्ष पद पर आसीन हुए तो अकबरपुर के रेलवे क्रासिंग, क्षेत्रीय श्री गाँधी आश्रम, बस स्टेशन, टाण्डा रोड से लेकर पटेल नगर तक मुख्य सड़क मार्ग के दोनों तरफ की पटरियों का निर्माण कार्य कराना उनकी सर्वोच्च प्राथमिकता होगी।
नगर पालिका का चुनाव सम्पन्न हो गया और वह पुनः अध्यक्ष पद पर आसीन भी हो गए, लेकिन अपना वादा पूरा नहीं कर सके। उनके इस झूठे वादे से उक्त क्षेत्रों के निवासियों में व्यापक रूप से असंतोष देखा जाने लगा। बहरहाल ज्यादा डिटेल पर न जाकर कुछ लेखकों, साहित्यकारों और व्यंग्यकारों की वाणी जो सुनी गई उस पर नजर डालें। एक कथाकार/व्यंग्यकार हैं उनसे वार्ता हुई तो वह बोले अब इस शहर में रहने लायक नहीं है। क्यों? का उत्तर था कि अकबरपुर शहर की मुख्य सड़क पर चलने में उन्हें कई बातों का भय सताता है। पहला यदि सड़क की पटरियों पर चला जाए तो ऊबड़-खाबड़ फूटपाथ पर अंग-भंग होने की प्रबल सम्भावना बनती है।
पटरियों पर टैक्सी-टैम्पो, दुकानों के सामने मोटर-मोटर बाइक बेतरतीब ऊपर से अतिक्रमण कर्ताठेले वाले यमदूत से जमंे रहते है। गिर गए तो धूल, कीचड़ के साथ-साथ फूटपाथ पर यत्र-तत्र-सर्वत्र जमंे ईंटें माथा फोड़कर ‘कोमा’ में पहुँचा देंगी। रही बात पतली सड़क की तो उस पर से गुजर जाएँगे कि कुचला शरीर पहचान में नहीं आएगा। साथ ही आत्मा परमात्मा में मिल जाएगा। तब गलियों से चलिए के उत्तर में उनका कहना है कि शोहदों और कुत्तों से कैसे बचा जाए साथ ही आबादी में आवारा और तबेलों से निकले मवेशियों (सांड़, गाय, भैंस) की कुलाँचे पोस्टमार्टम हाउस तक पहुँचाने में अपना विशेष योगदान देंगी। मीडिया से कुछ भी छिपा नहीं है। शोहदों के लिए ‘मजनूँ पिजड़ा’, कुत्तों के काटने पर ए.आर.वी., आवारा जानवरों, पालतू मवेशियों के छुट्टा घूमने पर पाबन्दी के लिए ‘काँजी हाउस’ की आवश्यकता है, लेकिन ये सब यहाँ परिप्रेक्ष्य में स्वप्न की बातें हैं। इसके अलावा कुछ खास बातें और-
अकबरपुर शहर वासियों का आरोप है कि प्रभावशाली और स्वजातीय लोगों की दुकानों/घरों और सहन पर सम्बन्धित सभासदों के मद से टाइल्स ब्रिक लगवाई गई है। टाण्डा रोड के पटेलनगर तिराहे पर अध्यक्ष के स्वजातीयों की बहुलता है, इसलिए उक्त स्थान को आकर्षक बनवाया गया है। यह नहीं मालूम कि इसमें खर्च धन कहाँ और किस मद से नपाप अकबरपुर को मिला?
पहला चुनाव बसपा के समर्थन से लड़कर नपाप अकबरपुर के अध्यक्ष पद पर आसीन होने वाले चन्द्रप्रकाश वर्मा ने इस बार का चुनाव निर्दल लड़कर दुबारा चेयरमैन बनकर हसरत पूरी किया। अकबरपुर नपाप में नए परिसीमन के पश्चात् तीन दर्जन से अधिक राजस्व गाँव शामिल हुए जिनमें चन्द्र प्रकाश वर्मा की जाति के लोगों की बहुलता बताई जाती है ऊपर से अकबरपुर विधान सभा क्षेत्र के विधायक सूबे की अखिलेश सरकार में राज्यमंत्री राममूर्ति वर्मा का वरदहस्त नपाप अध्यक्ष के प्रभाव में इजाफा कर रहा है ऐसा उपेक्षित क्षेत्र के नगर जनों का कहना है। कुछ भी हो नगर वासियों को नगरीय सुविधाओं की दरकार है और इन्हें मुहैय्या कराना नपाप अध्यक्ष/सभासदों की जिम्मेदारी है, लेकिन अकबरपुर के वासिन्दों को अभी तक निराशा ही हाथ लगी है। साफ-सफाई, पेयजल, पथ प्रकाश के बारे में यदि लिखा जाए तो उसमें भी अकबरपुर नपाप कैबिनेट द्वारा दो आँख की जा रही है।
भाग्य शाली वो लोग कहे जाएँगे जो अकबरपुर नपाप जैसे शहर में नहीं रहते हैं और उनके यहाँ एक पाँत दो भाँति, या जातीयता के चलते भेदभाव करने वाले नगराध्यक्ष, सभासद जैसे जनप्रतिनिधि नहीं होंगे। यदि ऐसा नहीं होगा तो उनके यहाँ की आम-खास समस्याओं का समाधान भी यथा सम्भव/यथा समय होता होगा। जन समस्याओं के इस एपीसोड में अभी बस इतना ही।

 


रीता विश्वकर्मा

 

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