रीता विश्वकर्मा
उम्र 15 वर्ष है तो क्या, ड्राइविंग लाइसेन्स और हेल्मेट की क्या आवश्यकता? दो पहिया आटो बाइक पर तीन सवारी या उससे एकाध अधिक। फिल्मी स्टाइल में उसका संचालन। अपनी जान जोखिम में डालकर दूसरों के लिए ‘डैंजर’ बने हुए ये किशोर उम्र के बालक किसी फिल्म का स्टंट सीन नहीं करते बल्कि स्कूल विद्यालयों में आते-जाते हैं। स्कूल जाते है तो जाहिर सी बात है कि पढ़ने ही जाते होंगे। स्कूल में पढ़ने वाले बालकों का आटो बाइक चलाना सड़क पर फर्राटे भरना, अपने दोस्तों से आगे निकलना, ओवरटेकिंग करना देखने वालों के लिए शोचनीय विषय तो अवश्य ही है और इस तरह का हैरतअंगेज करतब कितनी जिन्दगियों के लिए खतरा बन रहे हैं। इस पर समाज के हर वर्गीय लोगों को सोचना चाहिए विशेष तौर पर हर माँ-बाप को सजग रहने की जरूरत है।
किशोर उम्र के बालक/बालिकाएँ उतनी परिपक्व नहीं होती लेकिन अभिभावक, टीचर, समाज के जिम्मेदार लोगों और परिवहन विभाग को इस आम होती समस्या पर अंकुश लगाने के लिए प्रभावी कदम उठाने ही होंगे। भीड़-भाड़ वाले इलाकों में किशोर उम्र के लड़कों द्वारा की जाने वाली अनियंत्रित आटो बाइक रेस पर नियंत्रण लगाने के लिए घर-परिवार, समाज, शिक्षालय, शिक्षक और सरकारी तन्त्र की जिम्मेदारी बनती है फिर भी सामाजिक संगठनों के सक्रिय सदस्यों ने आज तक कोई पहल नहीं किया है। बताया जाता है कि आटो बाइक रेस करने वाले ये लड़के/लड़कियाँ यातायात के नियमों के बारे में शायद कुछ भी नहीं जानते। इसके लिए विद्यालय जिम्मेदार है। शायद कुछ भी स्कूलों से आते-जाते समय ये बालक भीड़ भरे क्षेत्रों, सड़कों, संकरी गलियों में फिल्मी स्टंट करते देखे जा सकते हैं। जी हाँ अनियंत्रित रफ्तार, तीन से चार सवारियाँ बिठाए इनकी मोटर बाइक संचालन रील लाइफ स्टंट न होकर रीयल लाइफ स्टंट सीन सा दिखता है। बच्चे भी जिद करके ही मोटर बाइक से स्कूलों में पढ़ने जाते हैं। लाडले जिद करें तो अभिभावक (माता-पिता) को उनके आगे सरेण्डर करना ही पड़ता है।
अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में अपने बच्चों को महंगी शिक्षा ग्रहण कराने वाले अभिभावक भी अपना स्टेटस सिम्बल ऊँचा रखने के लिए बच्चों को मोटर बाइक मुहैय्या करा देते हैं। आठवीं से लेकर इण्टर तक की शिक्षा ग्रहण करने वाले धनी माँ-बाप की औलादें बाइक (साइकिल) से ना जाकर मोटर बाइक से विद्यालय गमनागमन करते हैं। जिस स्थान पर 20 कि.मी. की स्पीड होनी चाहिए वहाँ इनकी मोटर बाइक के स्पीडो मीटर की सूई 80-85 पर रहती है। स्कूलों को जाने और वापसी के समय इन स्टंट टीनएज मैन बने बच्चों से राहगीर भी डरे रहते हैं, और असमय काल का ग्रास बनने से कतराते हैं इसलिए सुरक्षित स्थान पर खड़े होकर इनकी तेज रफ्तार आटो बाइक के गुजर जाने का इंतजार करते हैं। बताते हैं कि कुछ किशोरों ने गलत उम्र दिखाकर परिवहन विभाग से ड्राइविंग लाइसेन्स भी प्राप्त कर लिया है, लेकिन हेल्मेट पहनना और यातायात के नियमों की भरपूर जानकारी रखना अपनी तौहीन समझते हैं।
महँगे अँग्रेजी मीडियम स्कूलों में पढ़ने वाले इन किशोर उम्र बालक/बालिकाओं के माता-पिता, अभिभावकों को इस बात का इल्म कब होगा कि उन्होंने अपने बच्चों की सुविधा के लिए जो साधन दे रखा है वह कितना डैन्जरस यानि प्राण घातक है। जब भी इस कृत्य की तरफ लोगों का ध्यानाकृष्ट कराया जाता है तब वे भी इसे चिन्ता का विषय मानते हैं। अभिभावक और विद्यालयी प्रशासन भी काफी परेशान है। पता चला है कि कई विद्यालयों में आटो बाइक से आने-जाने पर प्रतिबन्ध भी लगाया गया है। इस मनाही के बारे में अभिभावकों को भी अवगत कराया गया है, लेकिन नतीजा सिफर ही मिल रहा है। कई विद्यालयों के प्रधानाचार्यों/प्रबन्धकों द्वारा अभिभावकों को मौखिक/लिखित रूप से अवगत कराया गया है कि छात्रों को स्कूल आने जाने के लिए मोटर बाइक मुहैय्या न कराए। इस बारे में कई अभिभावकों का भी मानना है कि इस समस्या के लिए लोग अपने बच्चों को वाहन न दें तो यह समस्या ही उत्पन्न न हो। इस समस्या का समाधान, नियंत्रण अभिभावकों की सजगता से ही संभव है।
तो क्या अभिभावकगण अपना और अपने बच्चों के स्टेटस सिम्बल स्तर को कुछ नीचे करेंगे। क्या ये जागरूक बनकर अपने बच्चों के लिए कैरियर पर विशेष ध्यान देंगे? बच्चों की हर इच्छा पूरी करने वाले अभिभावक अपने कम उम्र के बच्चों को मोटर बाइक मुहैय्या कराकर स्वयं, बच्चों और अन्य का जीवन संकट में डालने से बचेंगे? यदि स्टेटस सिम्बल पर ही विशेष ध्यान देना है तो धनी वर्गीय अभिभावक अपने चार पहिया आटो वाहनों से बच्चों को स्कूल भेजें और घर वापस मँगाए। ऐसा करने से उनकी हैसियत/इकबाल बुलन्द होगी और साथ ही बच्चे सुरक्षित घर से स्कूल और स्कूल से घर पहुँच जाया करेंगे। बहरहाल बच्चों को मोटर बाइक चलाने से रोकना नितान्त आवश्यक हो गया है क्योंकि किशोरवय के युवा बगैर लाइसेन्स और हेल्मेट के दो पहिया मोटर वाहनों से फर्राटा भरते हुए खुद तो जोखिम में होते ही हैं, साथ ही दूसरों के लिए भी खतरा बने हुए हैं। इसके लिए अभिभावकों को संजीदा होना पड़ेगा ताकि उनके बच्चे स्वयं सुरक्षित रहें और दूसरों के लिए भी हादसे का सबब न बनें।
रीता विश्वकर्मा
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