Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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माँ

 

मेरी माँ अब बूढी हो रही है…

 

कल तक पाल रही थी मुझे ,
आज खुद बच्चे की सी हो रही है ,
.मेरी माँ………

 

मेरे लिए सपने सजा खो दी उसने आखें,
अब यादों में मेरी गुम हो रही है ,
मेरी माँ ……..

 

बना के काबिल महफ़िलों के मुझे,
खुद खुले आँगन में अकेली सो रही है ,
मेरी माँ ……..

 

मैं निकाल रहा हूँ सागर से सीप ,
वह सांसों के आखिरी मोती पिरो रही है ,
मेरी माँ ……..

 

मेरी चाह दुनि मुठी मैं करने की
अपना ही माँमोह खोह रही है
.मेरी माँ……..…

 

रोज़गार के चाँद सिक्के हैं मेरे हाथ ,
वह लकीरों का तमाशा जोह रही है,

 

मेरी माँ अब बूढी हो रही है …....

 

 

Rekha Raj Singh

 

 

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