मेरी माँ अब बूढी हो रही है…
कल तक पाल रही थी मुझे ,
आज खुद बच्चे की सी हो रही है ,
.मेरी माँ………
मेरे लिए सपने सजा खो दी उसने आखें,
अब यादों में मेरी गुम हो रही है ,
मेरी माँ ……..
बना के काबिल महफ़िलों के मुझे,
खुद खुले आँगन में अकेली सो रही है ,
मेरी माँ ……..
मैं निकाल रहा हूँ सागर से सीप ,
वह सांसों के आखिरी मोती पिरो रही है ,
मेरी माँ ……..
मेरी चाह दुनि मुठी मैं करने की
अपना ही माँमोह खोह रही है
.मेरी माँ……..…
रोज़गार के चाँद सिक्के हैं मेरे हाथ ,
वह लकीरों का तमाशा जोह रही है,
मेरी माँ अब बूढी हो रही है …....
Rekha Raj Singh
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY