Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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जलन

 

 

दिपावली के अवसर पर पुरे घर की साफ -सफाई चल रही थी। सारे जगह की सफाई हो गई थी लेकिन दो बाथरूम साफ करना रह गया था। फर्शी -बर्तन साफ करने वाली कामवाली बाथरूम साफ नहीं करती थी ।पडोसन माया दी बोलीं कि सोसायटी की बाई से पूछ कर देखो ।वो अच्छे से साफ कर देगी।
सुबह नौ बजे सोसायटी में साफ -सफाई करने वाली बाई झाडू लगा रही थी।मैं उसको आवाज लगाई। इधर आओ न तुमसे काम है।
क्या काम है मैडम ?
मेरे घर का बाथरूम साफ कर दोगी। कर देती मैडम ।लेकिन मेरे कू टेम (टाईम ) किधर है ।दिन भर इतनी बडी सोसायटी में झाडू लगाना पडता है।
मूझे दो -तीन लोगों ने बताया तुम उनका बाथरूम साफ करती हो ।पैसा का चिन्ता मत कर मैं दूंगी।
वह पूछी -कितना देंगी ।
मैं बोली तीन सौ।
आजकल तीन सौ में क्या होता मैडम।बोलकर वह अपने काम में लग गई ।मैं घर के अंदर चली आई। थोडे देर में वह बाई आकर बेल बजाई।
अब क्या है?
मैडम तेरे को बाथरूम एकदम चकचक मांगता न।चलो पाँच सौ देना।कल दोपहर में मैं घर खाने को नहीं जाती । कल मेरा उपवास है। मैं दोनों बाथरूम साफ कर दूंगी । हाँ एसिड और टाइल्स ब्रश मंगवा के रखना।
मैं बोली ठीक है।
वह दुसरे दिन दोपहर में आई। वह साडी के पल्लू से अपने नाक-मुँह को ढक ली। फिर एक बाल्टी पानी और मग अपने पास रख ली।मैं सोची सामने खडी रहने पर ठीक से सफाई करेगी। एक कुर्सी ला बादरूम के सामने बैठ गई ।
अरे बाप ये क्या? पुरे बाथरूम में तीखा गंध फैल गया।खड-खड तेज आवाज झाडू की आने लगी।पुरा बाथरूम धुआँ -धुँआ हो गया।
क्या कर रही हो? एसिड डाला मैडम ।बोलकर ऊई माँ देवा करने लगी।
क्या हुआ ।मैडम ! पैर में जलन हो रही है।
चप्पल पहन कर काम करना था न ?
मेरा चप्पल इतना गंदा है घर के भीतर कैसे लाती ।मैं बोली मेरा चप्पल पहन लेती।
मुझे भीतर से अपराध बोध हो रहा था।अपने सुख के लिए बेचारी को तकलीफ में डाल दिये।
टेंसन नहीं लेने को मैडम ।मेरा तो यही काम ही है।माँ-बाप पढाया नहीं ।क्या करने को ।शादी करके भी सुख नहीं ।पाँच बच्चे हैं ,आदमी कभी काम पर जाता कभी नहीं ।वह बोलते जा रही थी और जल्दी -जल्दी सफाई करते जा रही थी।एसिड का छिटा पडते झट से बाल्टी का पानी हाथ पैर पर डाल देती।
एक-डेढ घंटे में दोनों बाथरूम के टाइल्स ,दरवाजे,नल ,फर्श एकदम साफ कर दी। हाथ -मुँह अच्छे धो ।साडी के कोने से पोछते हुये बोली--मैडम देख लो ।काम ठीक हुआ न।
मैं बोली बहुत अच्छा हुआ है इसलिये तो तुमको ही बोली और पाँच सौ का नोट उसे थमा दी।वह बहूत खुश हुई ।मैडम मेरा लडका कब से पटाखे खरीदने को बोल रहा इस पैसे से कल पटाखे लाउंगी कह कर चली गई ।मैं सोच रही थी यह कैसा जलन है ।

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(रेखा सिंह - पुणे )

 

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