Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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कुछ क्षणों का वह बयार

 

एक दिन अचानक
मुंह अँधेरे, सुबह सवेरे
आया था कुछ क्षणों का वह बयार।

 

सोई थी मैं अलसायी सी
खोई थी मैं मुरझाई सी
मुंह अँधेरे, सुबह सवेरे
आया था कुछ क्षणों का वह बयार।

 

नहीं बुलाया था मैंने
नहीं किया था स्वागत
मुंह अँधेरे, सुबह सवेरे
आया था कुछ क्षणों का वह बयार।

 

स्पंदनहीन मेरे ह्रदय में
लेकर वासन्ती मंद मनुहार
मुंह अँधेरे , सुबह सवेरे
आया था कुछ क्षणों का वह बयार।

 

अलसाए से, मुरझाए से
मेरे खोये खोये से ह्रदय को
हौले से , धीरे से
लेकर अपने आगोश में

 

छेड़ी एक संगीत लहरी
मृदुल शब्दों में
भावों से अपने भरकर
कुछ क्षणों के बयार ने

 

दिग्भ्रमित शून्य में खोया था
ना प्रेम बोध ना स्पंदन
अंतरतम में तुम उतर गई
बनकर नवीन पहचान मेरी।

 

हर उलझन की सुलझन हो तुम
घोर निराशा में आशा
प्रणय उषा बनकर छायी
चिरस्थाई मुस्कान ।

 

मेरे अभियान की विवेकानन्द
शान्ति हो तुम
साधना मेरी
मेरी शक्ति की पहचान।

 

रोम रोम में भरने को
अद्भुत एक रोमांच
मुंह अँधेरे, सुबह सवेरे
आया था कुछ क्षणों का वह बयार।

 

अब तो पल पल के जीवन को मेरे
बना लिया है कर्जदार
कुछ क्षणों का वह बयार ।

 

एक दिन अचानक
मुंह अँधेरे, सुबह सवेरे
आया था कुछ क्षणों का वह बयार।

 

रीता सिंह

 

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