अरे अनु ! तुम यहाँ? बहुत दिनों बाद अपने बचपन की सहेली को देखकर मै आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता के साथ उससे मिली। अपने शहर में उससे मिलने की आशा नहीं थी। दोपहर का समय था। आग्रह कर अपने घर ले आई।
हमने अपने यादों का पिटारा खोला, पर देखा अनु कुछ व्यथित सी है।
मैंने पूछा - " हमेशा हंसती मुस्कुराती अनु आज चुप - चुप क्यों है?
बिफर सी पड़ी वह। जानती हो आज हमारे विश्वविद्यालय में युवा महोत्सव में भाग लेने हेतु अंतर महाविद्यालय चयन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था।
मैंने कहा - ऐसे कार्यक्रम तो होते ही रहते हैं। इसमें परेशान होने की क्या बात है?
परेशान होने की ही तो बात है! अनु में व्यथित होकर कहा। जानती हो मै चार साल से वहां पूर्ण समर्पण से कार्य कर रही हूँ। लेकिन कभी भी योग्यता की बात नहीं होती, कहीं कोई जगह दे भी दी जाती है तो इस व्यंग्य वाणी के साथ कि 50 प्रतिशत आरक्षण है।
आज के कार्यक्रम में भी मंच पर कुलपति महोदय ने यही टिप्पणी की।
चलो क्या हो गया? मैंने माहोल को हल्का करने की कोशिश की।
क्या हो गया? कुछ भी तो नहीं। बस हमें प्रदर्शनी की वस्तु बना दिया गया । कुछ भी तो नहीं हुआ।
पता है तुम्हें प्रेस वाले के जाते ही कुलपति महोदय अलग से लगे एक कुर्सी पर बैठे। बगल में दूसरी कुर्सी लगी थी । मैंने सोचा आधा हक हमें दिया गया है तो इस दृष्टि से दूसरी कुर्सी महिला के लिए हुआ , मै जाकर उसपर बैठ गई। फिर क्या? तन गई भृकुटी हमें 50 प्रतिशत देने वाले की।
मै धीरे से हट गई। इतनी तेजी में दुसरे पदाधिकारी को बैठाया गया वहाँ जैसे कोई लुटेरा पास खड़ा हो और उससे कुर्सी बचाना हो।
बताओ दोहरी मानसिकता वाले ऐसे लोगो के बीच कैसे काम किया जाए? व्यथित अनु ने मुझसे प्रश्न किया।
मै चाय लाने के बहाने रसोईघर की तरफ चल निकली।
आखिर क्या जबाब देती अनु के सवालों का।
रोज हम महिलाएं ऐसे सवालों से जूझती हैं, फिर मौन अपनी पहचान बनाने में लग जाती हैं।
अनु पीछे से रसोई में आ गई।
उद्वेलित सा बोली - क्या कभी किसी महिला को महिला सम्मान उन्हें उनकी स्वतंत्र योग्यता पर मिल पाएगी?
शांत हो मेरी महिला सम्मान की रक्षिका , कहकर मैंने उसे चाय पीने को दिया। चाय पीकर वह अपने घर को चली गई। पर एक सवाल छोड़ गई -
क्या कभी किसी महिला को महिला सम्मान उन्हें उनकी स्वतंत्र योग्यता पर मिल पाएगी?
मंथन मेरे मन ने भी किया। देखा सफलता की बुलंदियों को छूने वाली महिलाओं की एक लम्बी फेहरिश्त है।
हो सकता है प्रारंभ अनु के सवालों के साथ, सभी ने किया होगा, पर अंतिम सफलता निश्चित उनकी अपनी होगी।
अनु भी समझ जायेगी बहुत जल्दी कि दोहरी मानसिकता वाले लोग कमजोर होते हैं उनके सम्मान करने या ना करने से महिला सम्मान कभी प्रभावित नहीं हो सकता।
डॉ रीता सिंह
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY