पहला दिन था विद्यालय में मेरा। बहुत खुश थी । शिक्षिका के रूप में काम करने का मौका मिला था । कक्षा में गई । सोचा पहला दिन है , सभी से पहले परिचय ही ले लूँ । कक्षा की एक लड़की को उठाया पूछा , नाम क्या है ? उसने कहा - 'पहले अपना नाम बताए।' मैंने पूछा -'शिक्षिका मैं हूँ या आप ।' उसने कहा - 'नई आप हैं या हम ।'
मैंने समझाने की कोशिश की 'आपलोगों ने बडों से बात करने की तमीज नहीं सीखी । '
जबाव मिला - 'आपने परिचय का तरीका नहीं सीखा । पहले अपना परिचय देना चाहिए .फ़िर दूसरे का परिचय पूछना चाहिए । '
मैंने कहा 'ठीक है पहले मैं ही अपना परिचय दे देती हूँ । फ़िर आपका परिचय लुंगी । मेरा नाम कविता गिरी है , मैं आपलोगों को हिन्दी पढाने आई हूँ ।'
झट एक लड़की उठकर बोली 'गिरी हुई हैं तो खड़े हो जाइए । वरना शिक्षा कैसे देंगी ?'
मुझे गुस्सा आने लगा था । मैंने सोचा अजीब बदमिजाज लडकियां हैं ।
मैंने गुस्से से कहा आपलोग को पढ़ना है या नहीं ।
एक व्यंग्य भरी मुसकान के साथ उनलोगों ने कहा पढ़ ही तो रहे हैं ।
क्या मतलब ? मैंने पूछा ।
शिक्षा का मतलब कुछ जानना होता है । हम आपके बारे में जान रहे हैं ।यह पढ़ाई ही है न ।
मैंने लगभग चीखते हुए कहा - 'मैं कक्षा से जा रही हूँ ।'
'रोका किसने है '- सभी ने कहा ।
मैं गुस्से में कक्षा से बाहर निकल गई ।
तभी कक्षा की एक लड़की दौड़ती हुई मेरे पास आई हाँफते हुए मुझे रोका । मेरा मन रोने रोने को हो आया था , मैं उससे बात नहीं करना चाह रही थी ।
मैं रुकी पर कुछ कहा नहीं ।
वह बोली मैम कक्षा में चलिए ।
क्यों तुमलोगों को तो पढ़ना नहीं है फ़िर क्यो बुलाने आई हो ।
पहले कक्षा में चलिए तो फ़िर बताती हूँ
मैं कक्षा में गई
सभी ने एक साथ कहा 'अप्रैल फूल ।'
मैं सोचती रह गई यह अप्रैल फूल था की रैगिग
डॉ रीता सिंह
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