Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

उपहार

 

बहुत दिनों बाद मै अपनी एक पुरानी सहेली रीना के घर गई थी । उनकी 8 साल की बेटी अन्जिका लगातार रोए जा रही थी। एक बड़ी प्रतियोगिता जीता था उसने। एक बड़ा सा तोहफा भी पाया था, फिर भी रोये जा रही थी।
मै अचम्भित थी। प्रतियोगिता जीतने, अखवार में नाम आने और बड़ा सा उपहार पाने के बाद भी कोई बच्चा इतना दुखी क्यों है?
वह अपने रोने का कारण बता भी नहीं रही थी। थोड़ी देर में वह शांत हुई। मैंने कहा - अन्जिका चलो बाहर घुमने चलते हैं। वह तैयार हो गई।
मेरी उत्सुकता तो उसके रोने का कारण जानने में थी।
मै उसे लेकर एक पार्क में गई। कुछ देर इधर-उधर की बात करने के बाद पूछा- " बेटा उपहार पाने के बाद रोई क्यों?
अन्जिका का चेहरा फिर रुआंसा हो गया। बोली सुधा कम्पनी वाले की दही प्रयोगिता में भाग लिया था। आधा किलो दही खाया। सभी ने कहा मै जीत गई। बड़ा उपहार भी दिया।
पर जानती हैं आंटी, उपहार क्या था?
क्या? मैंने उसे उत्साहित करते हुए पूछा।
वह मायूसी के साथ बोली -
"दही, पनीर, घी, मक्खन सब। बताइए यह सब गिफ्ट होता है ?"
बिलकुल वाजिब सवाल था , उस छोटी बच्ची का।
मैंने पूछा - क्या गिफ्ट होता तब ?
उसने कहा - ढेर सारा चाकलेट ही दे देते।
टिफिन बाक्स या पेन्सिल बाक्स दे देते।
कुछ यूजफुल चीज़ तो देते.....!
मैंने पूछा- अगर डिक्शनरी दे देते तो झट उसने जबाब दिया- वो कोई गिफ्ट है!
मैंने उसे एक फ्रूटी दिलवाया, उसे उसके घर छोड़ा और अपने घर वापस चली आई।
उस बच्ची का रोना और उपहार के दायरे में कुछ चीज़ विशेष को बाँध देना। मेरे मन में कई सवाल पैदा कर रहा था।
सुधा कंपनी वाले ने उपहार में अपने उत्पाद का प्रचार किया। प्रतियोगी के मनोभावो को ध्यान में नहीं रखा?
उनके लिए प्रतियोगिता सिर्फ व्यवसाय है।
बच्चे के लिए उपहार मतलब उनके पसंद की चीज़े। उपहार देने वाले की भावना की अहमियत उनके लिए कुछ भी नहीं है।
पिछले दिनों मैंने अपनी बेटी को एक उपहार लाकर दिया था- " उसने देखते ही मुंह बनाया, यह क्या है? कभी तो ढंग का चीज़ ले आया करो? भीतर से कुछ टूटता हुआ सा महसूस हुआ था।
उपहार तो एक दूसरे को जोड़ने का साधन हुआ करता था कभी। श्रद्धा और सम्मान हुआ करता था।
कितना व्यवसायिक हो गया है आज उपहार!!

 

 

 

डॉ रीता सिंह

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ