Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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वह लड़की

 

बहुत आस्थावान थी वह लड़की
उठाया था सुबह सबेरे ही मुझे
सोमबार का दिन था वह
भगवान शंकर की पूजा करनी थी
प्रसाशन द्वारा लगाए गए
टोले से सौ मीटर दूर सिथित चापाकल
पर जाना था स्वच्छ होने
उसके हाथ मे श्रद्धा के फूल थे
बाल्टी थी लोटा था मुह पर बोल थे
भगवान के गीतों के
मैं भी चलने को तैयार हुई उसके साथ
उसने देखा मेरे खाली हाथो को
पूछा कपडा नही लेना है नहाने के लिए
प्रश्न मेरे मन मे उभरा
उसने भी तो नही लिए हैं कपड़े
कहाँ हैं उसके कपडे
पर मैं रही मौन
नहीं पूछा उससे कोई सवाल
लिए अपना कपडा और
चल दी उसके पीछे
पहुंचें चापाकल के
टूटे बिखरे पाटो पर
बड़ी सहजता से भरा था उसने
पानी बाल्टी में
लोटा ले गई खेतों में
लौटी तो मिट्टी से
पहले साफ किया अपना हाथ
फिर मिटटी ले चमकाया लोटा को
दिया मुझे भी उस लोटे में पानी
खेत में जाने को
लौटी तो मिट्टी दे हाथ धुलवाया
फिर से चमकाया लोटे को
खाली हो गयी बालटी को
फ़िर से भरा था उसने
बारे मनोयोग से
उसके बाद
झिझक भरी नज़रों से देखा मुझे
बोली उधर मूड के बैठ जाइये
उसकी झिझक समझ से परे था मेरे
पर आग्रह अधिकार पूर्ण था
मुड़कर बैठ गयी थी मैं
पर तुरंत ही इक्छा हुई देखने की मुड़कर
मानव मन की यह अद्भुत लीला है
जो न करना है,
उसी के प्रति मन उत्सुक होता है
पलटकर देखा मैने
आपात्मस्तक नंगी वह
सिमटी सिकुरी सहमी सी
जल्दी जल्दी सर से पैर
ख़ुद को भिगोए जा रही थी
नजर से नजर मिली
झिझक ने शर्म का लबादा ओद लिया
ख़ुद को ढकने की असफल कोशिश
उसके कोमल हाथ करने लगे
पलभर मेरा सबकुछ मौन हो गया
संग्याविहीन मेरा मस्तिष्क
पुनः उलटी दिशा में मूर गया
महसूस किया मैंने
वह उठी कुछ कदम चली
बिना बदन पोछे पहना
उस फ्राक को जिसे उतारा था
उसने नहाने से पहले
अब वह स्वच्छ हो चुकी थी
पूजा के लिए
नहाने से पहले उतारे गए
अपने पैंट को पहनते हुए
कहा मुझसे
दीदी अब आप नहा लीजिये
वैसे तो पहले आप को ही
नहाने देना चाहिए था
पर
उजाला होने से पहले
मेरा नहाना था बहुत जरुरी
कारण आप समझ ही गई होंगी
मैं देखती रह गई उसे
कितनी निर्मल कितनी स्वच्छ थी वह
रोम रोम से फुट रही थी उसके
श्रद्धा की किरने
आस्था ने उसको कपडे की स्वच्छता से
बहुत ऊपर उठा दिया था
अभीतक मैंने देखा था
कपडे की स्वच्छता में
अपनी स्वच्छता को देखते
पुजारी को
अज मैं देखा रही थी
श्रद्धा में मग्न एक
नन्ही पुजारी को
उसे फिक्र नहीं थी
किसी बाहरी सफ़ाई की
मन की स्वच्छता के सहारे वह
लगी थी भगवान की भक्ति में
उस आस्थावान लड़की ने
समझाया मुझे
आस्था तन में नहीं
मन में होती है
उस अछूत लड़की के साथ
पूजा करने की दुविधा को
दूर कर मैंने स्नान किया
पास में रखे पत्थर को, शिव
समझकर उसी की तरह पूजा की
और भगवान से कहा
उस लड़की की तरह मुझे भी
स्वच्छ बना दे
निर्मल बना दे .
वह आस्थावान लड़की
मेरे जीवन को एक नया
रूप दे गई
एक नया विहान दे गई .

 

 

 

रीता सिंह

 

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