आज का ग्रामीण समाज और कल का बीता हुआ ग्रामीण समाज दोनों की परिभाषा की जाए तो बहुत ही अंतर होगा इन दोनों की परिभाषाये एक दूसरे से मिली जुली हो सकती है परन्तु एक जैसी नहीं भारत कृषि प्रधान देश है गावो का देश है लेकिन क्या किसान जीवित है गाव जीवित है शायद नहीं जो गाव हम चाहते है वो नहीं लोगो के बोलने का अंदाज वो मीठी बोली, भाईचारा और एक दूसरे के प्रति प्रेम अब गावों भी कम ही देखने को मिलता है ! लेकिन श्रम का महत्तव तो आज भी गावो में ही देखने को मिलता है श्रम की अपार सीमा वहीँ देखने को मिलती है !
आज विलासिता भरा जीवन और सारी सुख सुविधा पाने की इच्छा ने लोगो को केवल आत्मकेंद्रित कर दिया है, वह स्वार्थी होता जा रहा है शहर की बात ही छोड़ दे वो तो फ़ास्ट ट्रैक या बिजी लाइफ कहकर अपने आप को बचा लेता है लेकिन आज के ग्रामीण जीवन में भी ये बाते दिखायी देने लगी है !
जब पहले घर में मेहमान आते थे तो भले ही गुड़ और शरबत से उसका स्वागत किया जाता था लेकिन मन में उसके प्रति आदर और प्रेम अपार ख़ुशी लोगो के चेहरे से झलकती थी परन्तु आज गावों में भी लोगो के मन में प्यार और आदर भावना कम होती जा रही है !
मेरा अनुभव यही कहता है कि ये सब पहले न था परन्तु आज हालात कुछ और है ! गाव अब शहरो में तब्दील होता जा रहा है खेतो की परम्परा नष्ट होती जा रही है, लोग अपने खेत भट्टों में दे रहे है ! किसान घर बैठकर बस उन्ही भट्टों के भरोसे बैठा रहता है, गाव शहर की और बढ़ रहा है और शहर की और गावों के लोग पलायन कर रहे है, इसका क्या कारण हो सकता है ? मन में ठसक सी लगती है कि हमारी पहचान कृषि और खेतो लहलहाते फसलो से है ! हमारी प्रकृति से है लेकिन ये सब धीरे- धीरे नष्ट होता जा रहा है !
ग्रामीण जीवन और परिवेश भी बदलता जा रहा है, उसका रूप भी बदलता जा रहा है ! सिक्के के हमेशा दो पहलु होते है, एक सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक लेकिन केवल सकारात्मक पर विचार करे तो भारत विकसित हो रहा है, नए युग कि और बढ़ रहा है, और देशो की बराबरी कर रहा है, यह सब सही है, लेकिन इसका दूसरा पहलु उसे भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता क्यूंकि उन पहलुओ में भारत की वो तस्वीर है जो सच्चाइयो को बयां करती है वो तस्वीर है, जो आज के समाज की आज के लोगो की और आज के परिवेश की ! भारत में महानगरो को उचाईयों की ओर ले जाने वाला कहीं न कहीं भारत का गाव है ! लेकिन उसे नजर अंदाज कर दिया जा रहा है, किसान को उसकी मेहनत का फल नहीं मिल रहा है, और वो आत्महत्या तक कर रहा है लेकिन इसका जिम्मेदार कौन ? शायद पूरी व्यवस्था !
इन्ही सब कारणो से लोगो का लगाव एक दूसरे के प्रति प्रेम खत्म होता जा रहा है ! और ये बड़ी दयनीय और विचारणीय स्थिति है , गावों से संस्कृति और हमारे भारतीय होने की पहचान मिलती है ! और ये सत्य है, कि हम अपनी पहचान धीरे – धीरे खो रहे है ! कहते है सुख और चैन केवल गावों में है !
लेकिन क्या सच में आज भी गावों में पहले जैसा सुख और चैन है ? वहा का वातावरण कल की तरह स्वच्छ है अगर सही कहूँ तो नहीं क्यूंकि वातावरण तो वहा भी प्रदूषित हो चुका है और सुख की नींद शायद ही अब वहा आती है हमें आती होगी, लेकिन क्या सच में वहा के लोगो को भी वही अनुभूति होती है ? जो हमें होती है ! वहा जाकर जब हमें ही नहीं होती तो वे तो उसी परिवेश में रहते है तो उनकी क्या मनस्थिति होती होगी इस पर विचार करना बहुत आवश्यक है ! क्यों आज गाव में वो बात नहीं जो पहले थी अच्छी बात है आज गावों की लड़किया भी शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ रही है ! लेकिन आज भी वहा ऊच – नीच , ओर छुआछूत है और मैंने देखा है, महसूस किया है इनके इन बुराइयों की जड़ो को कैसे नष्ट किया जाए और आज गावों के लोगो में नकारात्मक सोच ने गहरा प्रभाव कर लिया ! दहेज़ प्रथा कहीं न कहीं इन्हे आज भी सताती है ! आज भी पर्दा प्रथा है, खत्म नहीं हुई है ! ये सारे दोष है और जो गुण थे वो ख़त्म होते जा रहे है और दोष जो थे वो न कम हुए और न ही ख़त्म हो रहे है !
हमें भारत को बचना है तो गावों को बचाना होगा उनकी तरक्की भी जरुरी है लेकिन उनके वास्तिविक रूप को मिटाकर नहीं तरक्की उनके असलियत के साथ उनके यथार्थ को उसी रूप में बनाये रखने के साथ क्यूंकि ये तरक्की कहिं न कहिं हमें विफलताओ का दर्शन करा सकती है ! भारत की एकता को हमे बनाये रखना है हमें अपने अस्तिव को बनाये रखना है इसके लिए जरुरी है हम ग्रामीण संस्कृतयो और सभ्यताओ को अधिक से अधिक महत्तव दे और उनके बारे में थोड़ा विचार करे या उनके द्वारा हम अपना ही विचार कहीं न कहीं करेंगे ! सरकार की कई सारी योजनाये है, लेकिन क्या सच में उनका लाभ गावों के लोगो को मिलता है कितना संतुष्ट है गावों के लोग क्या कभी हमने उनके बारे में सोचा शायद नहीं क्यूंकि हम आधुनिक युग के है न तो शायद फ़ास्ट ट्रैक लाइफ में समय ही नहीं मिला होगा !
लेकिन अब हमें समय निकालना होगा गावों की बुराइयों को मिटाना होगा हमें उनका साथी बनकर उनकी मदद करनी होगी ! सरकार को और सजग होना होगा और हमें उन लोगो को जागरूक बनाना होगा तभी जाकर हमारा और आपका सपना साकार और सच या कह ले सार्थक होगा !
गावो की भाषा परिवेश वह का समाज हमें इन सभी मुद्दो पर मिलकर एक साथ काम करना होगा ! अपने भारत की रौनक को बनाये रखना होगा क्यूंकि हमारी रौनक हमारे समाज और हमारे देश के गौरव में है ! और हमारे देश का गौरव हमारी संस्कृति से है और हमारी संस्कृति गावो में निवास करती है ! हमें अपनी संस्कृति को एक सुन्दर और सफलता से परिपूर्ण माहौल देना होगा जो गावों को आगे ले जाने से और हमारे जागरूक होने से साथ ही व्यवस्था को बदलकर नयी व्यवस्था की मांग के साथ सरकार का ध्यान अपनी ओर केंद्रित करके होगा तथा हमे अपने आप को सोने की चिड़िया फिर बनाना है ! ओर यह तभी सम्भव होगा जब पहले हम सोने के हो जाए !
हमारी संस्कृति हमारी पहचान हमारा गौरव है ! हमें अपने गौरव को बनाये रखना है और हमें उसके लिए हमेशा तत्पर रहना होगा एक सकारात्मक सोच के साथ उम्मीद की नयी किरण के साथ !
धन्यवाद !
रोहिणी विश्वनाथ तिवारी
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