Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
Administrator

आजादी की कहानी

 

 

मेरा भारत महान कहने और सुनने में कितना अच्छा लगता है, और साथ ही हमें आंतरिक गौरव की अनुभूति होती है ! मंगल पाण्डेय , भगत सिंह , सुखदेव, और झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई आदि कई महान लोग स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी थे ! हमें आजादी इन्ही लोगो की कुर्बानी से मिली हालाँकि गांधीजी अहिंसा के पुजारी थे, उनकी अनुपम कोशिश और अगाध प्रयासों से भारत आजाद हुआ और हमें स्वत्रंत रूप से जीने का वरदान मिला !


पहले भारत सोने की चिड़ियाँ था इसे गोरी चमड़ी वालो ने खोखला कर राख में तब्दील कर दिया और आज तक इसकी भरपाई नहीं हो पायी है चमकते हुए भारत का सपना सबकी आँखों में है सत्यमेव जयते यह हमारे भारत के न्यायालयों में और हमारे भारतीय मुद्राओ पर या सरकारी विभाग या फिर कहीं भी देख ले मिल ही जाता है वो भी स्वर्ण अक्षरो में गढा हुआ ! लेकिन किसी ने सही ही लिखा है कि मै बचाता रहा दीमक से घर अपना और चंद कुर्सी के कीड़े पूरा मुल्क खा गए ! यह कटु सत्य है, और सब जानते भी है वर्षो लग चुके है लेकिन इस दीमक के कीड़े की मौत नहीं होती या कह ले कि इसका वंशज बहुत मजबूत है जो अपनी इस खूबी को बढ़ा रहा है ! जमीरो को बेचे बैठे नेता, व्यापारी भारत में हर व्यक्ति को इसकी महक लग गयी है ! आप शायद सोचे मै तो ऐसा नहीं लेकिन जनाब जरा अपने अंदर की आत्मा को टटोलिये और खुद से सवाल करिये की क्या आप सच में आजादी की गोद में बैठे हुए है ? आप सच में आजाद है ? क्या आप जागरूक है ? केवल देश को आजादी मिली है लेकिन क्या हमने अपने आप को आजाद किया है, अपने अंदर समायी हुई तमाम बुराइयो से ? यदि आप ईमानदारी से जवाब ढूंढेंगे तो पाएंगे नहीं ! हमारी और आपकी स्थिति में कोई अंतर नहीं है बस हम तो सरकार पर आरोप, नेता पर व्यंग कर सकते है लेकिन क्या हमने कभी जागरूक होकर समाज में व्याप्त बुराइयो को दूर करने का प्रयास किया??? नहीं बिलकुल नहीं क्योंकि हम भारतीय बड़े सभ्य होते है न जी ! तो हम किसी के पचड़े में नहीं पड़ते लेकिन हम भूल जाते है की भारत तो हमारा है न भारत माता के सपूत तो हम भी है या कह ले की हम कपूत है तो शायद गलत न होगा माफ़ करियेगा लेकिन ये हमारी विवशता है कि आज भी हमारा भारत कई बुराइयो से ग्रस्त है परेशानियों से त्रस्त है महान लोग अपना कार्य कर गए लेकिन हम केवल उनका गुण - गान करते है, उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते है ! उनके रस्ते पर नहीं चलते या उनका आचरण धारण नहीं करते इस तरह के कई प्रश्न मेरे जहन में धधकते हुए आंग के गोले की तरह उठते है और फिर शांत हो जाते है यह सोचकर की पूरी व्यवस्था ही अस्त - व्यस्त हो गयी है ! तो इसे क्या मै अकेले बदल सकती हु ? नहीं लेकिन हम सब मिलकर प्रयास करे तो शायद शम्भव हो ! आजादी के इतने वर्षो के बाद भी क्या सच में हमें आजादी मिल पायी है क्या हम सच में स्वंतंत्र है ? यही प्रश्न मेरे मन मष्तिष्क पर हावी हो जाता है कई बार मन बेचैनी से भारी हो उठता है आज के भारत की तश्वीर आँखों के समक्ष खुले हुए गगन की तरह स्पष्ट है ! इन्ही उथल पुथल के साथ मेरा मन करुणा से भरा हुआ था कि, अचानक रात मैंने एक अदभुत सपना देखा क्या सपना कभी वो सच होगा ?


मैंने देखा सूरज की किरणो की तरह, चमचमाता हुआ भारत ! भाईचारा और प्रेम सरिता, नव युवको की आँखों में उमंग और उत्साह की लालिमा ! भारत बना फिर विश्व गुरु , न कोई भूखा न नंगा, कोई बेघर ना था , कोई बेरोजगार ना था ! प्रदुषण से मुक्त भारत ,नन्हे हाथो में प्यारा तिरंगा , उन्ही नन्ही आँखों में खुशियो का मेला, कोई आतंक न था , कोई नक्सलवाद न था, एक प्यारा संवाद था वन्दे मातरम का ! हरियाली चारो और , भारत बुलंदी की ओर ! भारत माता की जय हो हवाओ में यही गूँज फैली हुई थी, फिजाओ में कांती की लहर फैली हुई थी ! हर बेटा श्रवण कुमार , हर बेटी लक्ष्मी का रूप, हर घर में एक राम , ओर हर घर में बसा था प्यार ! हर बेटी सुरक्षित थी भारत में , बहु को मिलता था प्यार ! हर नारी ममता की मूरत , हर पुरुष की लक्ष्मण सी सीरत ! मेरा भारत प्यारा भारत खुशियो से भरा भारत ! उस सपने में मैं खोयी थी हल्की सी मुस्कान होठो पर थी ! तभी अचानक मेरी आँखे खुली , सामने था नया सवेरा बैठ थोड़ी देर अचंभित थी , क्या सच में वो मेरा भारत था ?


तभी अचानक खुली आँखों से देखा मैंने एक और सपना ! ऐसा लगे भारत माँ स्वयं कुछ कह रही है, भारत माँ कुछ कहना चाहती है, प्यार पाना चाहती है ! नए भारत को देखना चाहती है, ओर सच्ची आजादी चाहती है ! मैंने देखा भारत माता के आँखों में आसु दिखायी देते है , ख़ुशी नहीं कि आज़ाद है माँ , ख़ुशी नहीं कि सब पास है माँ ! माँ ने फिर सिसकिया भरी , सिसकिया भरते ही वो बोल पड़ी, बेटी मेरे लाल मुझे छोड़ गए होकर बेहाल ! कैसे भूलू मेरे उन लालो दुलारो को, जिन्होंने मेरी खुशियो के खातिर थी अपनी जान लुटाई ! माँ की होठो पर मुस्कान के लिए अपनी खून की नदिया बहाई ! मेरे उन लालो – दुलारो को सब लोग भूल गए ! उनकी कुर्बानियो को सब भूल गए, आजाद होकर भी कैद हु ,व्यथाओं की जंजीरो से जकड़ी हु ,पहले तो थे गोरे दुश्मन, पर आज तो बने मेरे अपने ही दुश्मन, मेरी आँखों के सपने बिखरे पड़े सोने की चिड़िया थी मैं कभी, गरीबी, भूखमरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचारी, इन सबसे मैं जूझ रही मेरी बेटियो के आँचल को फाड़ कर उन्हें शर्मशार खुले आम किया जाता है क्या फिर कोई झांसी कि रानी आएगी मेरी बेटियो को हौसला दे मजबूती दे आजादी प्रदान कराएगी ?? क्या फिर कोई भगत सिंह आएगा, मेरी खुशियो के खातिर क्या, वह अपने प्राण लुटायेगा ? मैं आज भी वैसे कैद हु , जैसे मैं वर्षो पहले थी, मेरे सच्चे सपूत कही खो गए, क्या फिर वो मेरे लिए आयेंगे , मुझे फिर से आजाद कराएँगे , क्या फिर कोई तिरंगा लहरायेगा , क्या फिर कोई शान बढ़ाएगा , मेरी चेतना है कही सोयी- खोयी क्या फिर कोई उसे जगायेगा ?
अंततः मेरी रूह काँप उठी और वो सपना खुली आखो के सामने से कहीं ओझल हो गया !


लेकिन कई सवालो से मेरा मन झकझोड़ गया ! लेकिन फिर भी एक आशा के साथ मन में एक विश्वास है, कि होगा आजाद भारत मेरा इन बुराइयो से आज नहीं तो कल होगा आखिर कब तक बुराई ? अंतिम जीत सच की होगी और वो दिन दूर नहीं मेरे द्वारा देखा गया सपना सच और साकार होगा !


जन- गण- मन राष्ट्रीय गान गाते समय करोडो भारतीयों का स्वर एक सा होता है, ताल एक सी होती है, मधुरमय वातावरण होता है, उस समय किसी संगीत को सीखने की आवश्यकता नहीं पड़ती संगीत तो स्वयं बजता है, सबकी रूह से, आत्मा से, विश्वास से, और अपने भारत माता से जुड़े हुए प्यार और लगाव से ! माँ भारती के साथ माँ सरस्वती वीणा की तान छेड़ती है, और मधुर भारत के सुर को अपनी ताल से जोड़ती है !


वन्दे मातरम, जय हिन्द, भारत माता की जय हो !

 


धन्यवाद !
तिवारी रोहिणी विश्वनाथ !

 

Powered by Froala Editor

LEAVE A REPLY
हर उत्सव के अवसर पर उपयुक्त रचनाएँ