Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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फिर आज निकली हु एक जंग की राह पर

 

 

फिर आज निकली हु एक जंग की राह पर ,
रोशनी की चाहत में अंधेरो की राह पर !
प्यार भरे फूलो को महकाने ,
नफ़रत की राह पर !
सटीक किनारो को ढूंढती ,
बीच भवर फसी समुन्दर की राह पर !
सरलता को तराशती हुई ,
इस आधुनिकता की राह पर !
सत्यता का आलोक फ़ैलाने ,
असत्यता के कांटो भरी राह पर !
मौलिकताओं का अलख जगाने,
अमौलिकताओ की राह पर !
अपनी मंजिलो को दिशा दिलाने ,
इन दिशाहीन राह पर !
जीवन को नया अंजाम देने ,
इस मृत्युभरी राह पर !
मन में एक डर है ,
इन सुनसान गलियो की राह पर ,
क्या कोई राही मिलेगा ?
इन खूखार भरी राह पर !
मन से फिर एक आवाज आयी ,
मेरी आत्मा ने मुझे एक कहानी सुनाई !
बस आत्मविश्वास का संग मिला,
मेरी ही कहानी बन इस जिंदगी की राह पर !

 

 

 

रोहिणी विश्वनाथ तिवारी

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