जिंदगी मुझको इतना बता,
तू इतनी रंगीन कैसे है !
हजारो रूपों को अपने एक ही,
रूप में कैसे ढाल लेती है !
कहीं हशीन तो कही नीरस है ,
कभी हलचल तो कभी नीरव है !
हजारो रंगों से सजी है कही,
तो कही बेरंग नज़ारे है !
दुल्हन की तरह चमकती है कही,
तो पत्थर की तरह घिसती है !
कितनी कांटो भरी मंजिलो पर चलकर,
पुष्पों की राहो को सजाती है !
अजीब है तेरी दास्तान,
अजीब है तेरी कहानी !
क्या बयान करू अपनी जुबानी,
ऐ जिंदगी तू है बस बहता पानी !
रोहिणी विश्वनाथ तिवारी
Powered by Froala Editor
LEAVE A REPLY