Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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खामोशियो को कैसे मिटाऊ

 

 

 

खामोशियो को कैसे मिटाऊ,
दूर जाते रिश्तो को कैसे मनाऊ !
कहीं आशा है तो कहीं निराशा है ,
मंजिलो में खोया कहीं कारवां है !
कोई एक आवाज दे दे कहीं से,
कोई कह दे कि तू कहा है !
आँखों कि रौशनी ओझल सी है,
शब्दो में मेरे कपकपाहट सी है !
प्यार का आँचल लहराऊ,
तारो से अपना आँगन सजाउ !
बीते लम्हो में कुछ छोड़ आयी ,
उन लम्हो को फिर अपनी और खीच लाऊ !
कह दू इस दुनिया से ,
सारा जहा मेरा है !
मेरे जहाँ में अपनी जन्नत,
मैं अपने हाथो से बनाऊ !
बस यही है ज़िंदगी,
जी लू जी भर के !
पल पल एक नया विश्वास जगाऊ

रोहिणी विश्वनाथ तिवारी

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