Swargvibha
Dr. Srimati Tara Singh
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लज्जा

 

 

है मुझमे लज्जा, है तुझमे लज्जा,
फिर भी ना जाने क्या, होती लज्जा !!
बेटियो को सिखाई जाती लज्जा ,
बेटो को खबर नही क्या होती लज्जा !!
बहुओ को सिखाई जाती लज्जा,
दमादो को खबर नही क्या होती लज्जा !!
चन्द रुपयो के लिए जलाई जाती लज्जा,
दहेजो के रूप मे घर लाई जाती लज्जा !!
माता - पिता को वृद्धाश्रम मे छोड़,
पत्नियो की खुशियो मे खुश होती लज्जा !!
हर आलय बना, मदिरालय यहा,
नशे मे हार जाती है लज्जा !!
कोई मंत्री यहा, तो कोई नेता यहा,
भ्रष्टाचार के रूप मे जीती लज्जा !!
कोई दामिनी बनी , कोई द्रोपदी बनी,
भरी सभा मे उछलती लज्जा !!
कोई सीता ,कोई गीता यहा,
हर अगनिपरीक्षा से गुजरती लज्जा !!
कई मंदिर यहा कई दानवीर यहा,
फिर भी भूखे नंगो के पेट मे मरती लज्जा !!
कोई नाम करे, बड़े बड़े काम करे,
दिखाओ के बीच सोती लज्जा !!
जब तबाही आए, कोई बरबादी आए,
मुआवज़ो को पेट भर खाती लज्जा !!
जाती के नाम पर होते है दंगे ,
उन दंगो के बीच पिसती लज्जा !!
नामी व्यापारी यहा उद्योगपति यहा,
व्यापारो के नाम बिकती लज्जा !!
बेशर्मी की कोई सीमा नही,
भरी बाज़ारो मे लुटती लज्जा !!
फिर भी लज्जा की दुहाई देते है लोग,
और फिर लज्जा से ही लड़ती है लज्जा !!
मै पूछती हू, उन लोगो से ,
जो ये पूछते , कहा तेरी लज्जा !!
जब बाज़ारो मे बलि चढ़ती लज्जा,
तब अन्धी हो सो जाती इनकी लज्जा !!
अरे मूर्खो उठो, अपनी आखें खोलो,
बिकती हुई अपनी जमीरो को झकझोड़ो !!
इतना भयावह रूप लज्जा का हुआ,
इस रूप को देख काप उठी मेरी लज्जा !!
है ये झूठी लज्जा, है ये फरेबी लज्जा,
सच्ची लज्जा कहा ? सच्ची लज्जा कहा ?
मन मे एक प्रश्न है उठा,
है लज्जा कहा ? है लज्जा कहा ?

 

 

 

meri ye kavita mere swargiya pitaji ki yaad gari me

 

Rohini Tiwari

 

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